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६० : आदर्श कम्या
यह एक प्रकार से दूसरे की अन्य महापुरुषों के बचनों से गहनतम अन्धकार है ।
विष्ठा का ही खाना हुआ ।" इस तरह ही यह सिद्ध है, कि निन्दा हृदय का
हुआ
आजकल नारी जाति में यह दुर्गुण विशेष रूप से फैला | क्या शहर, क्या गाँव, क्या घर, क्या धर्म स्थान आदि स्थानों पर स्त्रियाँ जब कभी एक साथ मिलकर बैठती हैं, तो वे किसो अच्छी बात पर विचार चर्चा नहीं करतीं । क्या शुभ कार्य करना चाहिए, किसकी क्या सहायता करनी चाहिए, किसका सद्गुण अपनाना चाहिए, कौन-सा काम करने से भलाई होगी - इन बातों को वे भूल कर भी नहीं सोचती ।
भाजकल नारी की दृष्टि, दूसरों के गुणों पर नहीं, दुर्गुणों पर है । वह खरे सोने में भी खोट हो खोजा करती हैं। गुण-कीर्तन के स्थान में दोषोद्घाटन करना ही, उनकी विशेषता है । अमुक स्त्री फड, झगडालू है । उसका चालचलन ठीक नहीं है, उसकी नाक बैठी हुई है । देखो न वह अमुक स्त्री बन-ठन कर रहती है । उसे कोई सलीका नहीं है, वह तो रोटी भी नहीं बना सकती । इस तरह बिना मतलब की बातें घन्टों बैठकर किया करती हैं। मालूम नहीं, इन बिना सिर पैर की बातों से क्या लाभ होता है ?
निन्दा कलह की शृंखला है :
स्त्रियों का हृदय छोटा होता जा रहा है । प्रायः वे किसी सुनी हुई बात को अपने हृदय में नहीं रख सकतीं। जब कोई स्त्री किसी की आलोचना करती है, तो सुनने वाली स्त्री उससे जाकर कह देती है - " वह तुम्हारे सम्बन्ध में अमुक स्त्री यों कह रही थी ।" बस फिर क्या है, कलह का सूत्रपात हो जाता है। इससे आपस में वह जमकर लड़ाई होती है, कि सारा मुहल्ला उनके सद्गुणों से परिचित
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