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________________ ब्रह्मचर्य का तेज : ८३ ब्रह्मचर्य पालन | यह गृहस्थ के लिए है । गृहस्थ अवस्था में ब्रह्मचर्यं का पालन पूर्ण रूप से जरा अशक्य है, अतः देश ब्रह्मचर्य का विधान किया है। जब तक गृहस्थ दशा में स्त्री-पुरुष विवाह नहीं करते हैं । तब तक उन्हें ब्रह्मचर्य का पूरा पालन करना चाहिए। और जब विवाह बन्धन में बंध जाए, तब स्त्री अपने पति के सिवाय और पुरुष अपनी पत्नी के सिवाय, ब्रह्मचर्य का पालन करता है । जैन-धर्म का यह ब्रह्मचर्य विभाजन, मनोविज्ञान की निश्चित शैली पर आधारित है । जैन-धर्म में सभी व्रतों का मनोवैज्ञानिक विधान किया गया है । ब्रह्मचर्य-साधना के नियम : हाँ तो प्यारी पुत्रियो ! तुम्हारे हाथ बड़ा अमूल्य अवसर है । जब तक तुम्हारे माता-पिता तुम्हारा विधिवत विवाह संस्कार न करदें, तब तक ब्रह्मचर्य व्रत का पूरा पालन करो । संसार के जितने भी पुरुष हैं सबका पिता व भाई के समान समझो । बड़ों को पिता और बराबर की आयु वालों को भाई । अपने हृदय को सदैव निर्मल रक्खो । बुरी बातों को तथा वासनाओं को कभी पास न आने दो, और पूर्ण ब्रह्मचारिणो रह कर विद्या पढ़ो | ब्रह्मचर्य व्रत को दृढ़ रखने के लिए नीचे लिखी बातों को त्याग देने की आवश्यकता है - १. गन्दे सिनेमा देखना | २. गन्दो किताबें पढ़ना । ३. भांड़ चेष्टाएँ आदि करना । ४. पुरुषों के बीच में व्यथ घूमना । ५. गन्दे गजल आदि के गाने गाना | ६. रूप-रंग के बनाव शृंगार में रहना । ७. किसी पुरुष की ओर बार-बार देखना | For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003413
Book TitleAdarsh Kanya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Conduct
File Size4 MB
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