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________________ प्रेम को विराट शक्ति : ६६ आप विश्व पर प्रकाशित हो जाता है। आवश्यकता है, प्रेम से गत रहने की। करो प्रेम मिलेगा: यह संसार एक प्रकार का दर्पण है । तुम जानती हो, दर्पण या होता है । दर्पण के आगे यदि तुम हाथ जोड़ोगी, ता वहाँ प्रतिबिम्ब भी तुम्हें हाथ जोड़ेगा। और यदि तुम दर्पण को चाँटा ओगी, तो वह अपने प्रतिबिम्ब के द्वारा तुम्हें चाँटा दिखा।। वह तो गुम्वद को आवाज है, जैसा कहे वैसा सुने । यदि सबके साथ प्रेम का व्यवहार करागी, तो वे सब भी तुमसे प्रेम ही व्यवहार करेंगे। और यदि तुम घमण्ड में आकर किसी प्रकार दुर्व्यवहार करोगी, ता बदले में तुम्हें भी वही अभद्र व्यवहार गा। तुम देखती हो प्रेम के बदले में वे भी तुमसे हादिक प्रेम जी हैं । और जिनसे तुम घृणा करती हो बदले में वे भी तुम से 'प्रकार घृणा करती हैं । बुराई और भलाई बाहर नहीं, तुम्हारे के ही भीतर है। भगवान् महावीर का यह दिव्य सन्देश सदा रक्खो कि-"अपने अन्दर देखो।" जब तुम किसी गरीब लड़की को देखकर उससे प्रेम करती तो वह तुम्हारा आदर करती हुई तुम पर दुगुना स्नेह प्रकट रती है। और जब उसे गरीब जानकर घृणा की दृष्टि से खती हो, तब वह भी तम्हारी बुराई करती हुई तुमसे नफरत करती है। यह एक निश्चित सिद्धान्त है कि जब भी तुम किसी के प्रति अपने मन में वैर और डाह करोगी, तब उसके मन में भी उसी प्रकार का वैर और डाह तुम्हारे लिए उत्पन्न हो जाएगा । याद रक्खो-संसार एक दर्पण है। यहाँ जो प्रेम करता है, उसी को प्रेम मिलता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003413
Book TitleAdarsh Kanya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Conduct
File Size4 MB
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