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प्रेम एक विराट शक्ति है, इस शक्ति का संचय हृदय की विशालता पर निर्भर करता है। वह विशालता आप में है, तो सारा विश्व आपकी मुट्ठी में है। और मुट्ठी खोलकर दिखा दीजिए कि प्रेम में कितनी शक्ति है।
म को विराट शक्तिः
यह दो अक्षरों का शब्द 'प्रेम' कैसा मधुर है ? मुख से प्रेम शब्द कलते हो कहने वाले की जीभ और सुनन वाले के कान मधुर हा ठे हैं । और सबसे मधुर हो जाता है-हृदय, जा कभा इस मधुरता भूलता ही नहीं। प्रेम का सुखप्रद अंकुर, पशु पक्षियां तक मे पाया जाता है। हिंसक हमादि पशु भो अफ्ना सन्तान से प्रेम करते हैं। तुमने देखा है ? बार शेरनो भी अपने बच्चों को किस प्रेम के साथ दूध पिलाती । तुमने कमो कुतिया का अपने बच्चों को दूध पिलाते हुए देखा है। ध पिलाते समय कुतिया लेट जाती है, सब पिल्ले इकट्ठे होकर सकी जोर दोड़ते है, कोई इधर से दूध पाता है तो, कोई उधर से, ई-कोई तो पेट पर भी चढ़ बैठते है । परन्तु कुतिया आनन्द से खें बन्द किए लेटी रहती है और दूध पिलाती है। इसी प्रकार य का अपने बच्चे के प्रति कितना प्रेम है ? वह अपने बच्चे को म से चाटती जाती है और साथ ही दूध पिलाती जाती है। कतना मधुर और महान है-प्रेम का राज्य ?
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