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________________ ६४ : आदर्श कभ्या तरह की उधेड़-बुन करना, कांट-छाँट करना, बड़ा खराब काम है । मन को तुम जितना ही कुटिल और बहमी बनाओगी, उतन ही घर में क्लेश और द्वेष बढ़ेगा। तुम्हारा मन दर्पण के समान समतल हो, खोजने पर भी उसमें कहीं ऊबड़-खाबड़पन एवं बाँकी टेढ़ी रेखा न मिले । माया मन का अन्धकार है : अपने अपराधों को छिपाना या छिपाने के लिए झूठ बोलना महा पाप है है । इसका ही दूसरा नाम कुटिलता है, माया है । यह दुर्बल हृदय का चिन्ह है । जिसका हृदय दुर्बल हो जाता है, वह अपने लिए ही भार हो जाता है । भगवान् महावीर ने जैन-धर्म में ईसीलिए प्रतिक्रमण करने को बहुत महत्व दिया है। प्रतिक्रमण में अपनी भूलों को स्वीकार किया जाता है और इस प्रकार मन का दंभ निकालकर उसे सरल एवं सूदृढ़ बनाया जाता है । माया मन का अन्धकार है इसे दूर करने के लिए प्रकिक्रमण का प्रकाशमान सूर्य अवश्य है । कल्पनाओं का केन्द्र : मन । बहुत-सी लड़कियां, अपने दोष छिपाने के लिए अपने बड़ों से यहाँ तक कि माता-पिता से भी झूठा बहाना बनाती हैं। बार-बार पूछने पर भी सत्य बात नहीं बताती । परन्तु क्या यह उचित है ? छिपाने वाली कभो भो दोषों से अपना पिंड नहीं छोड़ा सकती । दोष दूर तभी होंगे जबकि वे अपने बड़ों के सामने साफ-साफ प्रकट कर दिये जाएँगे । अपराध, छिपाकर मन को शान्ति नहीं मिलती है । मन में सदा भय बना रहता है, कि कहीं मेरी बातें प्रकट न हो जाएं ? अपराध छिपाने वाले का मन, भयंकर कल्पनाओं www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.003413
Book TitleAdarsh Kanya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Conduct
File Size4 MB
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