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________________ विबेक का दीपक : ३६ करती जाती हैं । यह आदत ठीक नहीं है । अधिक दिनों तक मिठाई खाने से त्रस, स्थावर जीवों की हिंसा होती है-इससे पाप लगता है और रोग भी हो जाते हैं । एक जैनाचार्य का उपदेश है.-"सर्दी में एक महीना, गर्मी में बीस दिन और चोमासा में पन्द्रह दिन से अधिक दिनों की मिठाई नहीं खानी चाहिए।" अतएव जब भोजन वगैरह बच जाय, तो उसे ठीक समय पर खुद काम में ले लेना चाहिए, अथवा किसी गरीब अनाथ को दे देना चाहिए। बासी भोजन करने के विचार से उसे व्यर्थ ही घर में नहीं सड़ाना चाहिए। इस छोटे काम में भी विवेक है : घर में झाड़ देने के लिए झाड़-बुहारी बहत कोमल सन आदि की रखनी चाहिए । क्योंकि कोमल-हृदया नारी को तो प्रत्येक कार्य कोमल भाव तन्तुओं को जोडकर ही करना चाहिए, यों ही बेगार टालने के लिए अगर झाड लगाई जाती है, तो यह स्पष्ट है, कि तुम्हारे हृदय में प्रत्येक प्राणी से अनुराग नहीं है तथा जीव दया के प्रति लापरवाही है, जबकि प्राणी मात्र पर अनुकम्पा होना मनुष्य का पहला धर्म है । यह छोटा कार्य भी विवेक के अन्तर्गत है। __अधिक क्या, घर का प्रत्येक कार्य विवेक और विचार से हो होना चाहिए । नहाना धोना, झाड़ना-पोंछना आदि सब काम यदि विवेक से किए जाएँ, तो सहज ही जीव-हिंसा से बचाव हो सकता है। जैन-धर्म विवेक में है। जिसमें जितना अधिक विवेक होगा वह उतना ही जैनत्व के अधिक निकट होगा। नारी-जीवन में कद पः कदम पर विवेक की आवश्यकता है। विवेकवतो नारी घर को स्वर्ग बना देती है और अपने लिए मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करती है । भगवान महावीर का उच्च आदर्श विवेकी जीवन ही प्राप्त कर सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003413
Book TitleAdarsh Kanya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Conduct
File Size4 MB
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