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________________ २८ : आदर्श कन्या सच्चा सुख कहाँ है ? सुख-शान्ति का सच्चा मार्ग अपनी इच्छाओं और आवश्यकताओं को कम रखने में है । जिसको जितनी इच्छाएं कम होंगी, वह उतना ही अधिक सुखी और शान्त रह सकेगा । भगवान् महावीर का अपरिग्रहवाद यही कहता है । मनुष्य को चाहिए, कि वह अपना रहनसहन सोधा-साधा बनाए । सीधा-साधा रहन-सहन सुख-शान्ति का मुल है । सोधे-सादे रहन-सहन का अर्थ है--वे कम से कम आवश्यकताएँ, जो साधारण-से-साधारण अवस्था में भी भली-भाँति पूर्ण हो सके । आवश्यकताओं को कम करना ही सच्चा सुख है। सर्व-प्रथम भोजन को आवश्यकता पर नियन्त्रण करने की जरूरत है। बहुत से लोग चटपटे और मशालेदार भोजन करने के आदो हो जाते हैं। यदि उनके भोजन में खटाई, मिर्च और मशाले न पड़े हों, तो फिर उनसे भोजन हो नहीं दिया जाता। वे लाग पेट कलर भाजन नहीं करते, वरन् जीभ के लिए भाजन करते हैं । कभो-कभी तो भोजन के पाछे घर में लड़ाई भी हो जाया करती है। यह भी क्या जिन्दगी है कि मनुष्य कभी कड़ी तो, कभी नरम दो रोटियों के लिए लड़े और एक दूसरे को भलाबुरा कहें। भोजन के लिए जीवन : तुम्हें याद रखना चाहिए कि खटाई और मिर्च-मशालेदार भोजन नाना प्रकार के रोग उत्पन्न करता है। दूषित भोजन से आखें कमजोर हो जाती हैं । मेदा बिगड़ जाता है। शरीर हर वक्त रोगी रहने लगता है । भोजन तो शरीर को स्वस्थ और सबल रखने के लिए है, ताकि स्वस्थ शरीर के द्वारा धर्म-साधना भली-भाँति विवेक पूर्वक की जा सके । बाजार को चाटें स्वास्थ्य को चट कर जातो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003413
Book TitleAdarsh Kanya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Conduct
File Size4 MB
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