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________________ है, वहमत होता है। रहने वाले लो श्रीकृष्ण जी नारो का पद अन्नपूर्णा : ६७ वालों को बौटकर नहीं खिलाता है, वह कभी मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता।" __भारतवर्ष के प्रसिद्ध कर्मयोगी श्रीकृष्ण जी ने भी कहा है जो भोजन, आस-पास में रहने वाले लोगों को बाँटकर खाया जाता है, वह अमृत होता है । जो आदमी बाँटकर नहीं खाता है, अकेला खाता है, वह पाप खाता है । बाँटकर खाने वाले के सब एप नष्ट हो जाते हैं, और वह परमात्मा के पद को पा लेता है।' ____जानती हो, तुमको शास्त्रों में घर की लक्ष्मी कहा है । लक्ष्मी का मन उदार होना चाहिए। अगर लक्ष्मी का मन छोटा हो जाए, तो कितना अनर्थ हो जाएगा? स्त्री को चौके की मालकिन बनना है, अन्नपूर्णा बनना है, अपने हाथों भोजन बन ना है और सबको बिना किसी भेदभाव के एक जैसा परोसना है । भोजन परोसने वाली नारी को यह ख्याल नहीं रखना चाहिए, कि मेरे लिए भो कुछ बचता है या नहीं ? वह तो एक दाना भी रहेगा, तब तक चौके में भोजन करने वालों को प्रसन्नभाव से-गद्गद् हृदय से परोसती ही रहेगो। वह सच्ची गृहलक्ष्मी कहलाती है । इसलिए तुम प्रारम्भ से ही मन को उदार रखने को आदत डालो, जो मिले उसे बाँट कर खाओ। कभी भी छुपाकर या चोरी से अकेले खाने का विचार मन में मत लाओ। नारी का स्नेह इससे विकसित तथा विस्तृत होता है, कि वह सबको भोजन अपने हाथों से परोस कर खिलाए। लक्ष्मी के लिए द्वार खोलो : किसी घर में धन-वैभव का भण्डार और लक्ष्मी का निवास तभी होता है, जब उस घर की लड़कियाँ और बहुएँ दिल की उदार होती हैं । जब घर की नारियों का दिल छोटा हो जाता है, तो हाथ बाँटते समय कांपने लगता है, और इससे छुपा-चुराकर खाने का भाव बढ़ जाता है, उस अवस्था में घर की लक्ष्मी का नाश होकर गरीबी और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003413
Book TitleAdarsh Kanya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Conduct
File Size4 MB
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