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________________ विलास विनाश है : ६५ देता है । विलासिता के साथ दूसरे अनेक दोष भी उत्पन्न हो जाते हैं । विलासी स्त्रियाँ प्रायः अकर्मण्य हा जाती हैं । कपड़े मैले न हो जाएँ, बनाया हुमा श्रृंगार न बिगड़ जाय, इसी की चिन्ता उन्हें सदा बनी रहती है । अतः कोई भी अच्छा सेवा का कार्य वे नहीं कर सकतीं । जो अपने सौन्दर्य के बहम में सदैव बनाव शृंगार करने में हो लगी रही हैं, वे दूसरी भोली-भाली स्त्रियों के जीवन में भी डाह और ईर्ष्या पैदा कर देती हैं । एक जगह की आग दूसरी जगह फैला देती हैं । विलासी स्त्रियों के स्वभाव में अहंकार घर कर ही जाता है । तुम्हारा सौन्दर्य और बढ़ेगा : मानव जीवन में अभ्यास का बड़ा महत्व है । मनुष्य जैसा अभ्यास करता है, वैसा ही बन जाता है । यदि तुम जीवन में कर्मउता का तप और त्याग का अभ्यास करोगी, तो तुम उसी रूप में ढल जाओगी । अगर तुम नाजुक मिजाजो में पड़कर विलासी जोवन अपना लोगी, उसी रूप में नाजुक बनकर रह जाओगी । परन्तु यह याद रखो, विलासिता जीवन का स्थायी अंग नहीं है । यदि कभी तुम्हें किसी विपत्ति का सामना करना पड़े तो उस समय क्या तुम अपने कर्तव्य का पालन कर सकोगी ? विलासी जीवन विपत्ति की चोट को जरा भी सहन नहीं कर सकता । मन मे आवश्यकता से अधिक भोग, बुद्धि रखना, अपनी स्थिति से बढ़कर बाह्य प्रदर्शन करना, अनावश्यक भोग-साधनों की ओर झुकाव रखना, यह सब विलासिता ही है । यदि तुम हृदय से अपनी, अपने देश की, अपने समाज की और अपने परिवार की भलाई चाहती हो, तो शीघ्र ही इस विलासिता राक्षसी को अपने मन से निकाल कर बाहर करदो | मन को पवित्रता तन पर अवश्य झलकेगी, और इससे तुम्हारा सौन्दर्य बढ़ेगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003413
Book TitleAdarsh Kanya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Conduct
File Size4 MB
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