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________________ विज्ञप्तिलेखसंग्रह-किंचित् प्रास्ताविक ऐसा ही विज्ञप्ति लेख जिनोदय सूरि को भेजा था जिस में उन्हों ने, पिछले वर्ष किये गये अपने प्रवास के वर्णन में, तीर्थ यात्रादि कार्यों का परिचय दिया था; उसी के उत्तर खरूप जिनोदय सूरि ने भी अपना यह विस्तृत एवं आलंकारिक विज्ञप्ति लेख लिख कर उन के पास भेजा था। इस से ज्ञात होता है कि लोकहिताचार्य का भेजा हुआ विज्ञप्तिलेख भी इसी प्रकार का एक उत्तम, सुन्दर साहित्यिक एवं वर्णनात्मक पत्र था । खोज करने पर, संभव है कि कहीं से वह पत्र भी किसी खोजी को मिल सक। ___ इस संग्रह में जो दूसरा बडा विज्ञप्ति स्वरूप लेख है वह 'विज्ञप्ति त्रिवेणी' नाम का है जो वि. सं. १४८४ की रचना है। यह विज्ञप्ति पत्रात्मक लेख खरतर गच्छ के जयसागर उपाध्याय नामक विद्वान् ने, सिंध प्रदेश के मलिकवाहण नामक स्थान से, अपने गच्छाचार्य जिनभद्र सूरि को लिखा था, जो उस समय गुजरात के पाटण नगर में रहे हुए थे। इस पत्र विषयक सब ज्ञातव्य बातें, मैंने उक्त विज्ञप्ति त्रिवेणी नामक पुस्तक की विस्तृत प्रस्तावना में आलेखित की हैं। मेरा विचार, उस प्रस्तावना को एवं अन्यान्य लेखों संबन्धी ज्ञातव्य बातों को भी, इस के साथ संकलित कर देने का रहा पर अभी समयाभाव से वैसा होना शक्य न जान कर, आज तो इस संग्रह को, वर्तमान रूप में ही, अपने हाथों में ले कर विद्वानों के सम्मुख उपस्थित हो रहा हूं। आशा है कि यह संग्रह इस रूपमें भी अभ्यासीवर्ग को आदरणीय होगा। फाल्गुन पूर्णिमा, सं० २०१६ । भारतीय विद्याभवन, बंबई -[ता० १३.३.१९६०] - मुनि जिनविजय Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003412
Book TitleVignapti Lekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1960
Total Pages238
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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