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किया जाए, क्योंकि यदि उसे नियंत्रित नहीं किया जाएगा तो वह निरंतर फैलता चला जाएगा। अतः उसको रोकने के लिए अमुक प्रकार के कदम उठाये जाते हैं, जिससे कि एक छोटे कदम के द्वारा, वह जो बड़े कदम के रूप में अन्याय, अत्याचार होने वाला है, उसको रोका जाए। प्रस्तुत प्रसंग में यदि केवल बाहर में ही स्थूल दृष्टि से देखा जाए, तो यही कहेंगे कि राम ने सीता के लिए लाखों लोगों को मौत के घाट उतार दिया। यह तो बहुत बड़ी हिंसा हो गई ! एक के लिए अनेकों का संहार ! लेकिन नहीं, यह तो एक छोटी हिंसा है। और वह जो उचित प्रतिकार न करने पर अन्याय-अत्याचार अनर्गल रूप पकड़ता, वह बड़ी हिंसा होती। तो, उस बड़ी हिंसा को रोकने के लिए ही युद्ध के रूप में यह छोटी हिंसा लाजमी हो गई थी। इसलिए राम की ओर से जो युद्ध लड़ा गया था, वह धर्मयुद्ध था। इसके विपरीत रावण की तरफ से जो युद्ध लड़ा गया, यह अधर्म युद्ध था। युद्ध एक ही है, और इसमें दोनों ओर हिंसा हुई है, दोनों ओर से मारे गए हैं लाखों आदमी। लेकिन एक धर्मयुद्ध माना जाता है और एक अधर्म युद्ध माना जाता है। ऐसा क्यों माना जाता है? ऐसा इसलिए माना जाता है कि राम के मन में एक उदात्त नैतिक आदर्श है। उनका युद्ध किसी अनैतिक धरातल पर नहीं है, किसी भोग-वासना की पूर्ति के लिए या राज्यलिप्सा के लिए नहीं है, बल्कि वह सतीत्व की रक्षा के लिए और अन्याय-अत्याचार की परम्परा को, जो कि जन-जीवन में बढ़ती जा रही है, रोकने के लिए है। इसी दृष्टि से विचार करने पर हम देखते हैं कि यह जो वर्तमान में पाकिस्तान और हिन्दुस्तान का युद्ध चल रहा है, उसका भी यथोचित विश्लेषण किया जाना चाहिए। विश्लेषण के अभाव में हमारे यहाँ कभी-कभी काफी भयंकर भूलें हुई हैं। और उनके दुष्परिणाम भारत को हजारों वर्षों तक भोगने पड़े हैं। अहिंसा सम्बन्धी गलत धारणाएँ
हमारे समक्ष हिन्दू सम्राट् पृथ्वीराज का ज्वलंत उदाहरण है। कहा जाता है कि जब मोहम्मद गोरी भारत पर आक्रमण करने आया, उस समय भारत की शक्ति इतनी सुदृढ़ थी कि वह हार कर चला गया। वह फिर आया और फिर पराजित होकर लौट गया, फिर आया और फिर पराजित हुआ। इस प्रकार वह कई बार और पराजित हुआ। उस समय भारत की रणशक्ति बहुत बड़ी थीं। बड़े-बड़े रणबाँकुरे वीर थे यहाँ। अतः बार-बार उसे यहाँ आकर पराजित हो जाना पड़ा। किन्तु एक
80 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प
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