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पहाड़ है या चाँद है। और हम हैं कि जिनके पास वस्तुस्थिति को जाँचने-परखने के कोई प्रत्यक्ष साधन नहीं हैं, केवल कुछ संकलित पोथियों के बल पर ही उन्हें भ्रान्त, झूठा एवं भ्रम फैलाने वाले कहते जा रहे हैं। लाखों-करोड़ों लोगों ने अपनी आँखों से जो सत्य देखा है, उसे सहसा असत्य उद्घोषित करने वालों के साहस का भी क्या कहना? कमाल हासिल है उनको अपने विश्वास पर ! बुद्धि का कुछ भी तो स्पर्श नहीं होने देते अपने विश्वास को।
अब रही यह बात कि शास्त्र का चन्द्रमा और है तथा दिखलाई देने वाला चन्द्रमा जिस पर अमेरिकन उतरे हैं, वह कोई और है! खेद है, शास्त्र श्रद्धा के नाम पर कितनी मिथ्या कल्पनाएँ की जाती हैं और भद्र जनता को अन्ध विश्वास मूलक भ्रान्त धारणाओं में उलझाया जाता है। यह जिन शासन की सेवा नहीं, कुसेवा है। एक दिन सत्य जनता के समक्ष आयेगा ही और तब उसके मन में विद्रोह का कितना बड़ा तूफान उठेगा कि इन धर्मगुरुओं ने हमें कितना भरमाया है और तब वह मुखर होकर कहेगी कि ये सब लोग झूठे हैं। इनके शास्त्र झूठे हैं और झूठे हैं इनके भगवान् भी।
मैं पूछता हूँ, जिसके कारण तिथियाँ होती हैं, पर्व होते हैं, कृष्ण और शुक्ल पक्ष होते हैं, जिसे ग्रहण लगते हैं, नक्षत्रों का योग होता है, वह चन्द्रमा तो यह ही है, जो आकाश में आँखों से दिखाई देता है। इसी पर वैज्ञानिक उतरे हैं, इसी के चित्र लिए गये हैं, इसी के टेलीविजन पर दृश्य देखे गए हैं और वहाँ से यहाँ बातें भी की है। यदि आपके शास्त्र का चन्द्रमा यह नहीं तो वह फिर कौन-सा है? ओर कहाँ है वह? और वह अदृश्य स्थिति में रहकर क्या काम करता है? क्या काम आता है हम लोगों के? अच्छा हो, कुछ कहने से पहले हम थोड़ा बहुत सोच-विचार लिया करें। समझ लिया करें। यों ही बेतुकी न हाँका करें, ताकि हमारा धर्म और दर्शन शिक्षित जनता की नजरों में उपहास का पात्र न हो।
हमारी बौद्धिक चेतना न मालूम कैसी है, जो प्रत्यक्षसिद्ध सत्य को भी स्वीकृत करने से प्रायः कतराती रहती है। हमारे कुछ ग्रन्थों में गंगा का वर्णन है, उसके प्रवाह की चौड़ाई लाखों मील की बताई गई है। वह प्रत्यक्ष में भारत की इस गंगा में मिलती नहीं है। वास्तविकता क्या है, एक समस्या खड़ी हो गई और हम उक्त समस्या के समाधान के लिए कहते हैं कि वह हमारी शास्त्रवाली गंगा और है, यह नहीं। वह शास्त्रवाली गंगा कहाँ है, यह अभी कुछ पता नहीं। होगी
क्या शास्त्रों को चुनौती दी जा सकती है? शंका-समाधान 41
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