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है, उसी का अपने और जगत् के लिए कुछ मूल्य है। उस मूल्य की स्थापना आज नहीं तो कल होगी, अवश्य होगी। संदर्भ :
1. चंद्रप्रज्ञप्ति 18/3 2. जम्बुद्वीप प्रज्ञप्ति, ज्योतिष चक्राधिकार 8 3. चंद्रप्रज्ञप्ति 20/2 4. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ज्योतिष चक्राधिकार 5. चन्द्रप्रज्ञप्ति 20/14 6. निरुक्त 2/11 7. साक्षात्कृतधर्माणो ऋषयो बभूवुः। निरुक्त 1/20 8. विशेषावश्यक भाष्य, गाथा 1384
शासु-अनुशिष्टौ शास्यते ज्ञेयमात्मा वाऽनेनास्मादस्मिन्निति वा शास्त्रम् टीका 9. उत्तराध्ययन 3/1 10. उत्तराध्ययन 3/8 11. प्रश्न व्याकरण 2/1 12. अहिंसा भूतानां जगति विदितं ब्रह्म परमम्। स्वयंभूस्तोत्र 13. प्रश्न व्याकरण 2/1-7 14. योगबिन्दु प्रकरण 2/9 15. यज्ञार्थं पशवः सृष्टाः स्वयमेव स्वयंभुवा। __ यज्ञस्य भूत्यै सर्वस्य तस्माद्यज्ञे वधोऽवधः।।
-मनुस्मृति 5/39 16. वाल्मीकि रामायण (शुनः शेप) बालकाण्ड, सर्ग 62 17. वसिष्ठ धर्मसूत्र 4/3 18. यस्तु छायां श्वपाकस्य ब्राह्मणो ह्यधिरोहति।
तत्र स्नानं प्रकुर्वीत घृतं प्रास्य विशुध्यति।।
अत्रि. 288-289, याज्ञ. 2/30 (मिताक्षरा में उद्धृत) 19. महा. अनु. 38/12 20. बौद्धान् पाशुपतांश्चैव लोकायतिकनास्तिकान्।
विकर्मस्थान् द्विजान् स्पृष्ट्वा सचैलो जलमाविशेत्।। -स्मृतिचंद्रिका पृ.118 21. (क) दिग्विजय पर्व, संभवतः 176 ई.पू. से पहले का है।
-भा. इ. रू. पृ. 1003
क्या शास्त्रों को चुनौती दी जा सकती है? 31
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