SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गर्भपात जैसे कृत्य तो भयावह हैं। वे पाप तो हैं, साथ ही नारी जीवन के साथ खिलवाड़ भी हैं। इस तरह अनेक अपने प्राण दे बैठती हैं। गर्भपात की अपेक्षा गर्भनिरोध ही ठीक है। न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी। हर कर्म में लाभ-हानि का ध्यान रखना आवश्यक है। गर्भनिरोध की प्रक्रिया में भी संभवतः कुछ गलत परिणाम आ सकते हैं। परन्तु, इन कुछ गलतियों की कल्पना में सर्वनाश को निमंत्रण नहीं दिया जा सकता। प्राकृतिक चिकित्सा अच्छी है, परन्तु जब वह कारगर न हो, तो अन्य चिकित्सा पद्धतियाँ भी अपनाई जा सकती हैं। मैंने अच्छे-अच्छे प्राकृतिक चिकित्सकों, योगियों, अध्यात्मवादियों और आंग्ल चिकित्सा पद्धति के कट्टर विरोधी धर्म गुरुओं को बड़े-बड़े हॉस्पीटलों में भरती होते और अनाप-शनाप अंग्रेजी एलोपैथिक अभक्ष्य दवाइयाँ खाते देखा है। यही बात अन्ततः परिवार नियोजन की प्रक्रिया में है। समाज कल्याण के लिए, राष्ट्र-हित में समयोचित कदम उठाना पाप नहीं है। पाप है, समयोचित कदम न उठाना। आप भला माने या बुरा मानें, मुझे गलत समझे या सही, मेरे अन्तर्मन को जो सही लगा है, वह नि:संकोच मैंने लिखा है। आज कोई भी हो, यदि पूर्वाग्रह एवं व्यर्थ दोषारोपण की वृत्ति से मुक्त होकर सोचेंगे, समझेंगे, विचार करेंगे, तो मुझे पूर्ण नहीं, तो कुछ तो सही पाएँगे ही ! बस, इतनी-सी बात मेरे लिए पर्याप्त है-शेष आनन्द-मंगल ! 178. प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003409
Book TitlePragna se Dharm ki Samiksha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year2009
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy