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________________ मेरे समक्ष टीका, दीपिका, अवचूरि तथा गुजराथी टब्बा के साथ दशवैकालिक सूत्र का बहुत पुरातन मुद्रित संस्करण है। यह संस्करण, श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परंपरा के चुस्त श्रावक श्री भीमसिंह माणकजी (बम्बई) द्वारा विक्रम संवत् 1957 तथा सन् 1900 में प्रकाशित है। कन्दमूल के सम्बन्ध में एकान्त अभक्ष्य की मान्यता का आग्रह, श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परंपरा को ही प्राय: सर्वाधि क है। अत: अन्य प्रकाशनों को छोड़कर हम यहाँ इसी परंपरा के पुरातन प्रकाशन को उपस्थित कर रहे हैं। मूल - सूत्र है, सातवीं-आठवीं शती के सुप्रसिद्ध श्रुतध र आचार्य श्री हरिभद्रजी की टीका है, और प्राचीन - गुजराथी बालावबोध (टब्बा ) है। विस्तार भय से दीपिका और अवचूरि का पाठ छोड़ दिया है। ये दोनों आचार्य हरिभद्रीय टीका का ही अनुसरण करते हैं, अतः अलग से इनकी यहाँ उपादेयता भी नहीं है। कंदे मूले य सचित्ते फले बीए य आमए 11317।। कन्द, मूल, फल और बीज कच्चे सचित्त साधु न ले। लेता है तो अनाचीर्ण है, दोष है। कन्दो वज्र कन्दादि, मूलं च सट्टामूलादि सचित्तमनाचरितम् । तथा फलं त्रपुष्यादि, बीजं च तिलादि आमकं सचित्तमनाचरितमिति सूत्रार्थः । - आचार्य हरभद्रजी की टीका 'कन्दः' एटले वज्रादि कन्द, तथा 'मूलम्' एटले मूल, ऐ बे वस्तु सचित्त वापरवी, ते अनाचरित । आमम् एटले लीलूं कांचूं, एवां फलं, ते कर्कटी आदिक फल, अने तिलादिक बीज, ऐ बे लीलां कांचा वापरावां, ते क्रमें करी आडत्रीशमं तथा ओगण चालीशमं अनाचरित जाणवुं । - गुजराथी बालावबोध उपर्युक्त मूल, टीका और बालावबोध पर से स्पष्ट है कि साधु के लिए कन्द, मूल, फल, बीज आदि सचित्त कच्चे अनाचीर्ण हैं, अचित्त पके हुए नहीं । .... कंद मूलं पलंबं वा, आमं छिन्नं च सन्निरं । तुंबागं सिंगबेरं च, आमगं परिवज्जए 15 | 11 70।। कन्द, मूल, फल, पत्रशाक, तुम्बाक - दूधी धीया, अदरक यदि कच्चे सचित्त हों तो साधु ग्रहण न करें, त्याग दें। Jain Education International कन्दमूल भक्ष्याभक्ष्य मीमांसा 165 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003409
Book TitlePragna se Dharm ki Samiksha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year2009
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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