________________
स्वीकार करने से इन्कार करता है न? 'दृष्टिरागो हि पापीयान् दुस्त्यजो विदुषामपि । ' इसीलिए साफ शब्दों में संवत्सरी अर्थ न करके, 'पर्युषण' शब्द का यों ही गोलमाल भाषा में प्रयोग करते हैं, किन्तु अन्दर में रखते हैं, उसी वार्षिक संवत्सरी प्रतिक्रमण रूप अर्थ को ।
समवायांग सूत्र और कल्पसूत्र के किसी भी टीकाकार ने उक्त पाठ के 'पज्जोसवेइ' पाठ का वार्षिक प्रतिक्रमण रूप, जैसा कि आज परम्परा प्रचलित है, अर्थ नहीं किया है, अपितु कारणिक वर्षावास के लिए स्थिर रहना ही अर्थ किया है । समवायांग सूत्र की श्री अभय देवीय टीका का पाठ दिया जा चुका है। कल्पसूत्र के तो मूल में ही उक्त समय के लिए हेतु दिया है, 'जओ णं......
आदि शब्दों में। वह पाठ भी उद्धृत कर आए हैं, जो स्पष्ट उल्लेख करता है कि श्रमण भगवान् महावीर ने बीस दिन अधिक एक मास बीतने पर वर्षावासरूप पर्युषण किया, आज का प्रचलित संवत्सरी प्रतिक्रमण नहीं ।
और तो और, कल्पसूत्र की सुबोधिका टीका के सम्पादक आचार्य सागरानन्द सूरि, जो अभी हुए हैं, उन्होंने भी भगवान् महावीर के द्वारा वर्षावास रूप पर्युषण करना ही लिखा है, सांवत्सरिक प्रतिक्रमण रूप पर्युषण करने का खंडन किया है। जैन परम्परा, भगवान् के लिए सांवत्सरिक प्रतिक्रमण तो क्या, कोई भी प्रतिक्रमण नहीं मानती। अतः प्रत्येक ईमानदार लेखक वही लिखेगा, जो श्री सागरानन्द सूरि इस सन्दर्भ में लिखते हैं- " अवस्थानपर्युषणापेक्षयैव एतत्सूत्रम् । ततो जिनस्य सांवत्सरिक प्रतिक्रमणस्य अभावेऽपि न क्षतिः । अतएवाऽग्रे ' अगारीणं अगाराई'. इत्यादिनाऽवस्थानोपयोगि एव उत्तरम् । "
यदि विद्वान् लेखकों का अभिप्राय सांवत्सरिक प्रतिक्रमण नहीं है, वार्षिक आलोचना नहीं है, तो फिर 'पर्युषण' से आपका क्या अभिप्राय है? प्राचीन आचार्यों द्वारा प्रमाणित वर्षावास अर्थ मानते नहीं, सांवत्सरिक आलोचना एवं प्रतिक्रमण भी नहीं, तो फिर पर्युषण के रूप में भगवान् महावीर ने कौन-सा कैसा पर्युषण किया? आखिर कुछ स्पष्ट तो होना चाहिए। और जब भगवान् महावीर से सम्बन्धित पर्युषण की बात स्पष्ट हो जाए तो फिर आगे होने वाले श्रमणों की बात स्पष्ट हो । आर्यकालक ने भी वर्षावास ही किया था
आर्यकालक ने उज्जयिनी से विहार कर प्रतिष्ठानपुर में भादवा सुदी 4 को वर्षावास ही आरंभ किया था। क्योंकि कालक कथा में, पर्व लेखानुरूप स्पष्ट
128. प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org