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मूलार्थ - " श्रमण भगवान् महावीर स्वामी वर्षाऋतुना वीश दिवस सहित एक मास व्यतीत थये सते अने सीतेर रात्रिदिवस शेष रहे सते वर्षावास प्रत्ये निवास कर्यो (चौमासु रह्या) (आ हकीकत पर्युषणामाटे समजवी ) "
उक्त संस्करण में ही अभयदेव सूरि की टीका का भी अनुवाद है - " समणे इत्यादि" - वर्षाना एटले चार मासना वर्षाकाल ना वीश रात्रि सहित एटले वीश दिवस अधिक एक मास व्यतीत थये सते अर्थात् पचास दिवसो गये सते तथा सीतेर रात्रि दिवस शेष रहे सते, अर्थात् भाद्रपदनी शुक्ल पंचमी ने वर्षावास प्रत्ये एटले वर्षाकाल ना अवस्थान प्रत्ये 'पज्जोसवेइ त्ति परिवसति' एटले सर्वथा प्रकारे निवास करे छे ।
पहेलाना पचास दिवसो मां तथा प्रकारनी (रहवाने योग्य) वसति नो अभाव विगेरे कारण होय तो बीजा स्थाननो पण आश्रय करे छे, परन्तु भाद्रपद शुक्ल पंचमी ( पंचमी थी ) तो वृक्षनी नीचे विगेरे कोई पण स्थले ( निश्चित ) निवास करे छे, ए आनुं तात्पर्य छे।”
उक्त अनुवाद के कर्ता श्वेताम्बर परम्परा के विद्वान् हैं, जो वर्तमान में पर्युषण के प्रचलित पक्ष को ही मानने वाले संप्रदाय से सम्बन्धित हैं। मैं उनका अभिनन्दन करूँगा कि वे सत्य के प्रति कितने निष्ठावान हैं। अपनी वर्तमान परम्परा के विपरीत होते हुए भी उन्होंने प्राचीन उल्लेखों को तोड़ा मरोड़ा नहीं, अस्पष्ट भाषा में उलझाया नहीं। जो सत्य था, उसे स्पष्ट शब्दों में लिखा । मैं नम्र निवेदन करूँगा कि हमारे पक्ष के विद्वान् भी प्रामाणिकता से काम लें। अपनी प्रचलित मान्यताओं के व्यामोह में सत्य का अपलाप न करें, ऐतिहासिक मूल उल्लेखों को तोड़े - मरोड़े नहीं ।
क्या भगवान् महावीर प्रतिक्रमण करते थे?
जिनवाणी, सम्यग्दर्शन तथा हिन्दी गुजराथी में पूज्य श्री घासीलालजी और दूसरे भी कितने ही महानुभाव समवायांग सूत्र के उक्त बहुचर्चित पाठ का अर्थ करते हुए काफी गड़बड़ा गए हैं। सम्यग्दर्शन लिखता है - " श्रमण भगवान् महावीर ने वर्षावास के सित्तर रात्रि दिन शेष रहने पर पर्युषण किया । " जिनवाणी लिखती है-“ श्रमण भगवान् महावीर ने 1 मास 20 दिन रात्रि बीतने पर चातुर्मास के 70 रात्रि दिन शेष रहने पर पर्युषण किया । " पूज्य श्री घासीलाल जी भी, जैसा
126 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प
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