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________________ प्रतिपादित वार्षिक पर्व की तो वहाँ गंध तक नहीं है। एक शब्द भी तो ऐसा नहीं है, जिस पर इतना हल्ला है। पाठकों की जानकारी के लिए हम यहाँ मूल पाठ सहित टीका शब्दशः उद्धृत कर रहे हैं। ___“समणे भगवं महावीरे वासाण सवीसराए मासे वइकूते सत्तरिएहिं राइंदिएहिं सेसेहिं वासावासं पज्जोसवेइ।" टीका-वर्षाणां चतुर्मासप्रमाणस्य वर्षाकालस्य सविंशतिरात्रे विशतिदिवसाधि के मासे व्यतिक्रान्ते=पञ्चाशति दिनेष्वतीतेष्वित्यर्थः। सप्तत्यां च दिनेषु शेषेषु भाद्रपद शुक्ल पञ्चम्यामित्यर्थ:। वर्षा सु आवासो वर्षावास := वर्षा स्थान 'पज्जोसवेइ' परिवसति-सर्वथा वासं करोति। पञ्चाशति प्राक्तनेषु दिवसेषु तथाविध वसत्यभावादिकारणे स्थानान्तरमप्याश्रयति। भाद्रपद शुक्लपञ्चम्यां तु वृक्षमूलादावपि निवसतीति हृदयम्। साधारण संस्कृतज्ञ भी देख सकता है कि टीकाकार अभयदेव क्या कहते हैं? 'वर्षासु आवासो वर्षावासः वर्षास्थानं, पज्जोसवेइ परिवसतिं-सर्वथा वासं करोति' का भाव है कि “बीस रात्रि सहित एक महीना बीतने पर वर्षावास-वर्षाकाल में एकत्र निवास, अर्थात् चौमास करना। आगे के शब्दों का भाव है कि पहले के 50 दिनों में तो साधु के योग्य वसति अर्थात् मकान का अभाव आदि कारण हों तो साधु स्थानान्तर भी कर सकता है, स्थान बदल सकता है, किन्तु भाद्रपद शुक्ला पंचमी से तो वृक्ष के नीचे भी वर्षावास के लिए निवास करे, एक ही जगह रहे, स्थान न बदले।" विचारशील पाठक देख सकते हैं, यह वर्षावास करने का सूत्र है या वार्षिक पर्व का? वार्षिक पर्व का तो एक शब्द भी नहीं है। इस पर भी बड़े अहं में आकर सम्यग्दर्शन लिखता है कि "कविजी ने.... समवायांग का मूल पाठ तो ठीक दिया, किन्तु उस मूल पाठ का जो भाव बतलाया वह असत्य है। .... इस असत्य का कारण सामान्य पाठकों को अंधेरे में रखना है। पाठकों को अंधेरे में मैं रख रहा हूँ, या सम्यग् दर्शन? मैंने तो टीका के आध र पर पर्युषण का वर्षावास में स्थित रहना'-अर्थ किया था। इस संबंध में किसी भी संस्कृतज्ञ सज्जन से पूछा जा सकता है कि मूल के 'वासावासं' और टीका के 'वर्षावस्थानं' का क्या अर्थ है? 'पज्जोसवेइ' का टीकाकार ने 'परिवसति' और परिवसति का फिर 'सर्वथा वासं करोति' जो अर्थ किया है, वह क्या है? पर्युषण : एक ऐतिहासिक समीक्षा 123 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003409
Book TitlePragna se Dharm ki Samiksha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year2009
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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