________________
प्रशंसा करता है। सभी अपना आत्मीय मानते है।
कामाणी जैन भवन, भवानीपुर कलकत्ता के 16 वर्ष तक वे प्रमुख पद पर रहें। रूढ़ पंरपरावदियों की आलोचना सहकर संस्था को सफलता के शिखरों पर पहुंचाया। उनकी दृष्टि में व्यक्ति की अपेक्षा संस्था का हित सर्वोपरि था। __ अपनी गुरू-भक्ति और सेवा के संस्कारो की पावन गंगा को उन्होंने पूरे परिवार में प्रवाहित रखा। श्री भूपतभाई की तरह ही उनके सुयोग्य पुत्र, पुत्रियाँ, पुत्रवधुएँ, पौत्र, पौत्रियाँ आदि सभी वीरायतन के प्रति समर्पित हैं।
श्रध्देय आचार्यश्रीजी के हम सदैव ऋणी रहेगें। उनके आर्शीवाद से यह प्रकाशन संभव हो सका हैं।
आशा है, चिन्तनशील प्राज्ञचेता जिज्ञासु प्रस्तुत पुस्तक का अवश्य लाभ उठायेंगे।
तनसुखराज डागा महामंत्री वीरायतन शरद् पूर्णिमा, 3 अक्टुबर 2009
श्री तनसुखराज डागा
- प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org