________________
गाँधी युग फिर दुहराया है
सभी जानते है कि जब विदेशी आक्रमणकारियों के द्वारा भारत पर आक्रमण हुआ, तब देश कितना पददलित हुआ था। कितने निम्न स्तर पर चला गया था और किस प्रकार हमारी नैतिक चेतना शमित हो गई थी ! यह जो फिर से दोबारा जान आई है देश के अन्दर। आप सबको मालूम है, वह गाँधीजी द्वारा आई है। अन्याय-अत्याचार का प्रतिकार करने के लिए आवाज उठी है, जनता में नई प्रेरणाएँ जगीं, अहिंसा एवं सत्य के माध्यम से स्वतंत्रता का युद्ध लड़ा गया
और विश्व की एक बहुत बड़ी शक्ति-ब्रिटिश साम्राज्य को पराजित कर राष्ट्र स्वतंत्र हुआ। और सौभाग्य की बात है कि स्वतंत्रता का युद्ध लड़ने वाला सेनापति अपने युग का एक महान् अहिंसावादी था। पर, वह ऐसा अहिंसावादी था, जो अहिंसा के मूल अर्थ को समझता था। वह अहिंसा के प्रचलित सीमित अर्थ तक ही नहीं रुका हुआ था, बल्कि वह अहिंसा को भूत, भविष्य, वर्तमान के व्यापक धरातल पर परखता था।
अहिंसा के विस्तृत आयाम पर गाँधीजी की दृष्टि थी। यही कारण है कि जब काश्मीर पर प्रथम पाकिस्तानी आक्रमण हुआ, तो उनसे पूछा गया कि काश्मीर की रक्षा के लिए सेनाएँ भेजी जाएँ या नहीं? तो उन्होंने यह नहीं कहा कि सेना न भेजो, यह हिंसा है, यदि कुछ करना है तो वहाँ जाकर सत्याग्रह करो। ऐसा क्यों नहीं कहा उन्होंने? इसलिए कि सत्याग्रह सभ्य पक्ष के लिए होता है। विरोध । भले ही हो, किन्तु सभ्य विरोधी सत्याग्रह जैसे सात्त्विक प्रयासों से प्रभावित होता है। परन्तु जो असभ्य बर्बर होते हैं, उनके लिए सत्याग्रह का कोई मूल्य नहीं होता। खूख्वार भेड़ियों के सामने सत्याग्रह क्या अर्थ रखता है? ब्रिटिश जगत् कुछ और था, जिसके सामने सत्याग्रह किया गया था। वह फिर भी एक महान् सभ्य जाति थी! किन्तु याह्याखाँ और उसके पागल सैनिकों के समक्ष कोई सत्याग्रह करे, तो उसका क्या मूल्य हो? याह्याखाँ का क्रूर सैनिक दल बाँगला देश में मासूम बच्चों का कत्ल करता है, महिलाओं के साथ खुली सड़कों तक पर बलात्कार करता है, गाँव के गाँव जलाकर राख कर डालता है, हर तरफ निरपराध बच्चे, बूढ़े, नौजवान और स्त्रियों की लाशें बिछा देता है, इसका मतलब यह कि वह युद्ध नहीं लड़ रहा है। वह तो हिंसक पशु से भी गई-बीती स्थिति पर उतर आया है। प्रश्न है, इस अन्याय के प्रतिकार के लिए क्या किया जाए? अहिंसा
धर्म-युद्ध का आदर्श 89
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org