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इस प्रकार जब देश में अन्न की प्रचुरता थी और उपभोक्ताओं के पास आवश्यकता से अधिक परिमाण में अन्न मौजूद था, तब भी भारतवर्ष में उपवास किए जाते थे, तो आज की स्थिति में यदि उपवास आवश्यक हो, तो इसमें आश्चर्य की बात ही क्या है ? किन्तु आप है, जो गोदाम की तरह रोज-रोज पेट को अन्न से भरते जा रहे हैं ! जड़ मशीन को भी सप्ताह में एक दिन आराम दिया जाता है, परन्तु, आप अपनी होजिरी को एक दिन भी आराम नहीं देते। निरन्तर पचाने की क्रिया के बोझ से दबे रहने से वह निर्बल एवं रुग्न हो जाती है। आपकी पाचनशक्ति बिगड़ जाती है, तब आप डाक्टरों की शरण लेते है और पाचनशक्ति बढ़ाने की दवाइयाँ तलाश करते फिरते हैं ! मतलब यह है कि प्रावश्यकता से अधिक खा रहे हैं, बीमार पड़ रहे हैं, और फिर भी अधिक खाने की इच्छा रख रहे हैं। एक तरफ तो करोड़ों को जीवन-निर्वाह के लिए भी खाना नहीं मिल रहा है, देश के हजारों-लाखों आदमी भूख से तड़प-तड़प कर मर रहे हैं और दूसरी तरफ लोग अनाप-शनाप खाये जा रहे हैं और भूख को और अधिक उत्तेजना देने के लिए दवाइयाँ तलाश कर रहे हैं!
इस अवस्था में उपवास करना एक अोर धर्मलाभ है, तो दूसरी ओर लोकलाभ भी है। देश की भी सेवा है और आध्यात्मिक-साधना भी है। जीवन और देश की राह में जो खंदक पड़ गई है, उसे पाटने के लिए उपवास एक महत्त्वपूर्ण साधन है। उपवास करने से हानि तो कुछ भी नहीं, लाभ-ही-लाभ है। शरीर को लाभ, प्रात्मा को लाभ और देश को लाभ, इस प्रकार इस लोक के साथ-ही-साथ परलोक का भी लाभ है।
हाँ, एक बात ध्यान में अवश्य रखनी चाहिए । जो लोग उपवास करते हैं, वे अपने राशन का परित्याग कर दें। यही नहीं कि इधर उपवास किया और उधर राशन भी जारी रखा । एक सज्जन ने अठाई की और पाठ दिन तक कुछ भी नहीं खाया। वह मुझसे मिले तो मैंने कहा--"तुमने यह बहुत बड़ा काम किया है, किन्तु यह बतानो कि आठ दिन का राशन कहाँ है ? उसका भी कुछ हिसाब-किताब है ?" उसका हिसाब-किताब यही था कि वह ज्यों-का-त्यों आ रहा था और घर में जमा हो रहा था। यह पद्धति ठीक नहीं है। उपवास करने वालों को अपने आपमें प्रामाणिक और ईमानदार बनना चाहिए। अतः जब वे उपवास करें तो उन्हें कहना चाहिए कि आज हमको अन्न नहीं लाना है। मैंने उपवास किया है, तो मैं आज अन्न कैसे ला सकता हूँ?
वास्तविक दृष्टि से देखा जाए, तो जो व्यक्ति अन्न नहीं खा रहा है, उसका इस तरह अन्न संग्रह करना चोरी है। मेरे इस कथन में कटुता हो सकती है, परन्तु सच्चाई है। अतएव उपवास करने वालों को इस चोरी से बचना चाहिए।
अभिप्राय यह है कि प्रामाणिकता के साथ अगर उपवास किया जाए, तो देश का काफी अन्न बच सकता है और भारत की खाद्य समस्या के हल करने में बड़ा भारी सहयोग मिल सकता है। सप्ताह में या पक्ष में एक दिन भोजन न करने से कोई मर नहीं सकता, उलटा मरने वाले का जीवन बच सकता है ! इससे आत्मा को भी बल मिलता है, मन को भी बल मिलता है और आध्यात्मिक चेतना भी जागृत होती है। इस प्रकार आपके एक दिन का भोजन छोड़ देने से लाखों लोगों को खाना मिल सकता है। गो-पालन:
किसी समय भारत में इतना दूध था कि लोगों ने स्वयं पिया, दूसरों को पिलाया, अपने पड़ोसियों को बाँटा! आवश्यकता हेतु कोई आदमी दूध के लिए आया और उसे दुध न दिया, तो किसी यग में यह एक पाप माना जाता था। भारत के वे दिन कैसे महनीय थे कि किसी ने पानी माँगा, तो उसे दूध पिलाया गया। विदेशियों की कलमों से भारत की यह प्रशस्ति लिखी गई है कि भारत में किसी दरवाजे पर आकर यदि कोई पानी मांगता है, तो उसे दूध मिलता है ! एक युग था, जब यहाँ दूध की नदियाँ बहती थीं !
देश की विकट समस्या : भूख
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