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दिन-रात नाचने को तैयार खड़ी रहती थीं, जिन्होंने अपने जीवन में कभी सर्दी या गर्मी बर्दाश्त नहीं की थी, जिनका जीवन फूलों की सेज पर बीता था, उन देवियों के मन में जब वैराग्य की लहर उठी, तो वे संसार की विपरीत परिस्थितियों एवं विपत्तियों से टक्करें लेती हईं, भयानक से भयानक सर्दी-गर्मी और वर्षा की यातनाएँ झेलती हुईं भी भिक्षुणी बनकर विचरने लगीं। उनका शरीर फूल के समान सुकुमार था, जो कभी हवा के एक हलके उष्ण झोंके से भी मुरझा जाता था, किन्तु हम देखते हैं कि वही देवियां भीषण गर्मी
और कड़कड़ाती हई सर्दी के दिनों में भी भगवान महावीर का मंगलमय सन्देश घर-घर में पहँचाती थीं। जिनके हाथों ने देना-ही-देना जाना था, आज वे ही राजरानियाँ अपनी प्रजा के सामने, यहाँ तक कि झोपड़ियों में भी भिक्षा के लिए घूमती थीं और भगवान् महावीर की वाणी का अमत बाँटती फिरती थीं।
साधक-जीवन की समानता:
मैं समझता हूँ, कि अन्तरात्मा की जब दिव्यशक्तियाँ जाग उठती हैं, तो यह नहीं होता कि कौन पीछे है और कौन आगे जा चुका है। कभी आगे रहने वाले पीछे रह जाते है और कभी पीछे रहने वाले बहुत आगे बढ़ जाते हैं।
जब हम श्रावकों की संख्या पर ध्यान करते हैं, तो यही बात याद आ जाती है। श्रावकों का जीवन कठोर जीवन अवश्य रहा है, किन्तु उनकी संख्या १,५६,००० ही रही और उनकी तुलना में श्राविकाओं की संख्या तीन लाख से भी ऊपर पहुँच गई। तेजोमय इतिहास:
कहने का अर्थ यह है कि हमारी श्राविका बहनों का इतिहास भी बड़ा ही तेजोमय रहा है। आज वह इतिहास धुंधला पड़ गया है और हम उसे भूल गए हैं। अतः बहनें आज फिर अँधेरी कोठरी में रह रही हैं, उन्हें ज्ञान का पर्याप्त प्रकाश नहीं मिल रहा है। किन्तु आज से ढाई हजार वर्ष पहले के युग को देखने पर विदित होता है कि चौदह हजार की तुलना में छत्तीस हजार और १,५६,००० की तुलना में ३,१८,००० श्राविकाओं के रूप में सामने अाकर अपनी समुन्नत, सुरम्य एवं सर्वथा स्पृह्य झाँकी उपस्थित कर देती हैं। महिलाओं का दुष्कर साहसी जीवन :
बहुत-सी बहनें ऐसी भी थीं, जिनके पति दूसरे धर्मों को मानने वाले थे। उन पुरुषों (पतियों) ने अपने जीवन-क्रम को नहीं बदला, किन्तु इन बहिनों ने इस बात की कतई परवाह न कर अपना स्वयं का जीवन-क्रम बदल डाला और सत्य की राह पर आगई। ऐसा करने में उन्हें बड़े-बड़े कष्ट उठाने पड़े, भयानक यातनाएँ भुगतनी पड़ी और धर्म के मार्ग पर आने का बहुत महँगा मूल्य चुकाना पड़ा। जब उन बहनों के घर वालों की मान्यताएँ भिन्न प्रकार की रहीं, उनके पति का धर्म दूसरा रहा, तब उन्होंने अनेक प्रकार का विरोध सह कर भी अपने सम्मान, अपनी प्रतिष्ठा को खतरे में डालकर भी तथा नाना प्रकार के कष्टों को सहन करते हुए भी वे प्रभु के पथ का अनुसरण करती रहीं।
तात्पर्य यह है कि जब हम नारी जाति के इतिहास पर दृष्टिपात करते हैं, तो देखते हैं कि उनका जीवन बहुत ऊँचा जीवन रहा है। जब हम उनकी याद करते हैं, तो हमारा मस्तक श्रद्धा से स्वतः झुक जाता है।
सम्राट श्रेणिक और महाराणी चेलना:
___ मगध सम्राट राजा श्रेणिक का इतिहास, भारतीय इतिहास के कण-कण में प्राज भी चमक रहा है। भगवान् महावीर के साथ-साथ श्रेणिक का नाम भी हमें बरबस याद आ जाता है। उसे अलग नहीं किया जा सकता। आप जानते हैं, वह महान् सम्राट् श्रेणिक ३८८
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