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________________ चोर कहे हैं। काला बाजार से वस्तुओं को बेचने वाले, खरीदने वाले, रसोई करनेवाले, भोजन करने वाले इस कार्य के प्रशंसक आदि, ये सभी कम-ज्यादा अंश में चोरी के पाप के भागीदार कहे जाते हैं। २. तदाहृतादान : चोर द्वारा चुराई हुई वस्तुएँ लेना, तदाहृतादान है। चोरी की हुई वस्तु सदा सस्ती ही बेची जाती है, जिससे लेने वाले का दिल ललचाता है, और वह खुश हो कर खरीद लेता है। कोई शक्कर, चावल आदि राशन की वस्तुएँ चोरी करके लाया हो और आप उन्हें खरीदते हैं, तो उससे भी यह प्रतिचार लगता है । ३. विरुद्ध- राज्यातिक्रम: प्रजा के हितार्थ सरकार ने जो नीति नियम बनाये हों, उनका भंग करना 'विरुद्ध - राज्यातिक्रम' प्रतिचार है। यदि प्रजा इस प्रतिचार-दोष मुक्त रहे, तो सरकार को प्रजा हित के कार्य करना सरल बन जाए । ४. हीनाधिक- मानोन्मान : कम-ज्यादा तोलना -मापना, न्यूनाधिक लेना-देना, इस अतिचार में आता है। आपकी दुकान पर समझदार या नासमझ, वृद्ध या बालक या स्त्री चाहे कोई भी व्यक्ति वस्तु खरीदने आए, तो आपको सबके साथ एक जैसा प्रामाणिक व्यवहार ही रखना चाहिए। श्रप्रामाणिकता भी मूल में चोरी है। अनजान ग्रामीण से अधिक मूल्य लेना साहूकारी ठगाई है, दिन की चोरी है। चोरी, चाहे दिन की हो, या रात की, चोरी ही कही जाती है। ५. प्रतिरूपक व्यवहार मूल्यवान वस्तु में कम मुल्य की वस्तु मिलाकर या असली स्थान पर नकली वस्तु बनाकर बेचना 'प्रतिरूपक व्यवहार' अतिचार-दोष है । आज प्राय: हर चीज में मिलावट देखी जाती है। घी के व्यापारी शुद्ध घी में वनस्पति घी या चर्बी आदि मिलाते हैं । आजकल वनस्पति घी में भी चर्बी मिलायी जाने लगी है। दूधवाले दूध में पानी मिलाते हैं। शक्कर में आटा, कपड़े धोने के सोढ़े में चुना, जीरा और अजवाइन के उसी रंग के मिट्टी- कंकर, मिलाये जाते हैं । जीरा में किस प्रकार मिलावट की जाती है, इस सम्बन्ध में कुछ वर्ष पहले 'हरिजन सेवक' में एक लेख प्रकाशित हुआ था। घास को जीरा के आकार में काटने के कई कारखाने चलते हैं। पहले जीरा के आकार में घास के टुकड़े किए जाते हैं, फिर उन पर गुड़ का पानी छिड़का जाता है। इस प्रकार नकली जीरा तैयार करके थैली में भर कर असली जीरे के नाम से बेचा जाता है। खाने के तेल में शुद्ध किया हुआ गंध रहित घासलेट तेल या चर्बी को मिलाया जाता है। खाद्य पदार्थों में इस प्रकार जहरीली वस्तुओं का संमिश्रण करना कितना भयंकर काम है ? क्या यह नैतिक पतन की पराकाष्ठा नहीं है ? काली मिर्च के भाव बहुत बढ़ जाने से व्यापारी लोग उसमें पपीते के arry का सम्मिश्रण करने लग गए हैं। गेहूँ, चावल, चना आदि में भी उसी रंग के कंकरों का मिश्रण किया जाता है। इस प्रकार, जो भारतीय नागरिक नैतिक दृष्टि से विदेशों में ऊँचा समझा जाता था, वही आज सब से नीचा समझा जाने लगा है। दवाएँ भी नकली बनने लग गई हैं। नैतिक पतन की कोई सीमा ही नहीं रह गई है। बीमार मनुष्यों के उपयोग में आने वाली दवाओं में भी जो उनके स्वास्थ्य एवं जीवन-रक्षा के लिए हैं, जहाँ इस तरह मिलावट की जाती हो, गलत एवं हानिप्रद दवाएँ बेची जाती हों, तो कहिए भारत जैसे धर्म-प्रधान देश के लिए यह कितनी लज्जास्पद बात है । पत्र-पत्रिकाओं में विज्ञापन के द्वारा बेची जाने वाली अपनी साधारण वस्तुनों का अतिशयोक्ति - पूर्ण वर्णन करना भी इस अतिचार में आता है। इन अतिचारों का यदि सर्व साधारण जन त्याग कर दें, तो पृथ्वी पर स्वर्ग उतारा जा सकता है। स्पष्ट है, इन सभी प्रतिचारों से मुक्त होने में ही मानव-समाज का श्रेय है । २८८ Jain Education International For Private & Personal Use Only पन्ना समिक्ay धम्मं www.jainelibrary.org.
SR No.003408
Book TitlePanna Sammikkhaye Dhammam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year1987
Total Pages454
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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