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________________ ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं। अध्यात्मवादी-दर्शन को कर्मवादी होना आवश्यक ही नहीं, परम आवश्यक भी है। प्रश्न यह है कि यह कर्म क्या है, कहाँ से आता है ? और, क्यों आता है ? तथा कसे अलग होता है? कर्म एक प्रकार का पुद्गल ही है, यह प्रात्मा से एक विजातीय तत्त्व है। राग और देष के कारण आत्मा कर्मों से बद्ध हो जाती है। माया, अविद्या और 'अज्ञान से आत्मा का विजातीय तत्त्व के साथ जो संयोग हो जाता है, यही प्रात्मा की बद्धदशा है। भारतीय दर्शन में विवेक और सम्यक्-ज्ञान को आत्मा से कर्म को दूर करने का उपाय माना है। प्रात्मा ने यदि कर्म बाँधा है, तो वह उससे विमुक्त भी हो सकती है। इसी आधार पर भारतीय-दर्शनों में कर्म-मल को दूर करने के लिए अध्यात्म-साधना का विधान किया गया है। पुनर्जन्मवाद : भारतीय-दर्शन की एक और महत्त्वपूर्ण विशेषता है-जन्मान्तरवाद अर्थात् पुनर्जन्म । जन्मान्तरवाद भी चार्वाक-दर्शन को छोड़कर अन्य सभी दर्शनों का एक सामान्य सिद्धान्त है। यह कर्म के सिद्धान्त से फलित होता है। कर्म-सिद्धान्त कहता है---शुभकर्मों का फल शुभ मिलता है और अशुभ-कर्मों का फल अशुभ । परन्तु, इस जीवन-यात्रा में आबद्ध सभी कर्मों का फल इस जीवन में पूर्ण नहीं हो पाता। इसलिए कर्म-फल को भोगने हेतु अन्य अनेक जीवन की आवश्यकता है। यह संसार जन्म-मरण की अनादि शृंखला है, यही जन्मान्तरवाद है। इसका कारण मिथ्या-ज्ञान और अविद्या है। जब तत्त्व-ज्ञान से, यथार्थ-बोध से, वीतराग-भाव से नये कर्म का आस्रव रुक जाता है, तथा पूर्व-बद्ध कर्मों की निर्जरा होकर सर्वथा नाश हो जाता है, तब इस संसार का भी अन्त हो जाता है। संसार, बन्ध है, और बंध का नाश ही मोक्ष है । बन्ध का कारण अज्ञान एवं मिथ्या प्राचार है और मोक्ष का कारण-तत्त्व-ज्ञान एवं वीतराग-भावरूप प्राचार है। जब तक आत्मा पूर्वकृत कर्मों को भोग नहीं लेगी, तब तक जन्म-मरण का प्रवाह कभी परिसमाप्त नहीं होगा। भारतीय-दर्शनों की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता है-मोक्ष एवं मुक्ति । भारतीयदर्शनों का लक्ष्य यह रहा है कि यह मोक्ष, मुक्ति और निर्वाण के लिए साधक को निरन्तर प्रेरित करते रहें। मोक्ष का सिद्धान्त भारत के सभी अध्यात्मवादी-दर्शनों को मान्य है। भौतिकवादी होने के कारण अकेला चार्वाक-दर्शन ही इसको स्वीकार नहीं करता । भौतिकवादी चार्वाक जब इस शरीर से भिन्न प्रात्मा की सत्ता को ही स्वीकार नहीं करता. तब उसके विचार में मोक्ष का उपयोग और महत्त्व ही क्या रह जाता है ? बौद्ध-दर्शन में प्रात्मा के मोक्ष को निर्वाण कहा गया है। निर्वाण का अर्थ है--सब दुःखों के प्रात्यन्तिक उच्छेद की अवस्था । जैन-दर्शन में मोक्ष, मुक्ति और निर्वाण-तीनों शब्दों का प्रयोग उपलब्ध होता है। जैन-दर्शन के अनुसार, मोक्ष एवं मुक्ति का अर्थ है-मात्मा की परम विशुद्ध अवस्था। मोक्ष अवस्था में आत्मा सदा-सर्वदा के लिए स्व-स्वरूप में स्थिर रहती है, उसमें किसी भी प्रकार का विजातीय तत्त्व नहीं रहता। सांख्य-दर्शन में प्रकृति और पुरुष के संयोग को संसार कहा गया है और प्रकृति तथा पुरुष के वियोग को मोक्ष कहा गया है। न्याय और वैशेषिक भी यह मानते हैं कि तत्त्व-ज्ञान से ही मोक्ष होता है। वेदान्त-दर्शन तो मुक्ति को स्वीकार करता ही है। उसके अनुसार जीव के बद्ध स्वरूप को समझ लेना ब्रह्मज्ञान को प्राप्त कर लेना ही मुक्ति है। इस प्रकार भारत के सभी अध्यात्मवादी-दर्शन मोक्ष एवं मक्ति का प्रतिपादन करते हैं। हम देखते हैं कि मोक्ष के स्वरूप में और उसके प्रतिपादन की प्रक्रिया में भिन्नता होने पर भी, लक्ष्य सबका एक ही है और वह लक्ष्य है-बद्ध प्रात्मा को बन्धन से मुक्त करना। अध्यात्म-साधना: भारतीय-दर्शन में एक बात और है, जो सभी अध्यात्मवादी दर्शनों को स्वीकृत है। जैन-दर्शन की समन्वय-परम्परा ६१ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003408
Book TitlePanna Sammikkhaye Dhammam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year1987
Total Pages454
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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