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________________ ६ पालिपाठावली स्वरूपनुं ज्ञान प्राप्त थया सिवाय आर्यधर्मनुं समग्र अने संपूर्ण दर्शन थई शके तेम नथी; तेथी गुजरातना राष्ट्रीय विद्यापीठे पोताना आर्यविद्यामन्दिरना विद्यार्थिओ माटे संस्कृत साथै प्राकृत अने पाली भाषाना अध्ययनने पण आवश्यकीय स्थान आप्युं छे. तदनुसार ए विद्यामन्दिरना विद्यार्थिओना प्रथम वर्षना पालीभाषाना अभ्यास माटे प्रस्तुत 'पालि पाठावली ' नी योजना करवामां आवी छे. आ ' पाठावली 'नी योजना खास करीने कोपनहेगन यूनिवर्सिटिना प्रो० डिनेस एन्डर्सन, पीएच्. डी. ए पालीभाषाना अभ्यास माटे ज तैयार करेला Pali Reader नामना पुस्तकना आधारे करवामां आवी छे. तेथी आ ठेकाणे मजकुर प्रोफेसर महाशयनो खास आभार मानवामां आवे छे. तेमज प्रेसकॉपि अने प्रुफपत्र तपासवा विगेरेना काममां मददगार तरीके पुरातत्त्वमन्दिरना - राजचंद्र- ज्ञानभण्डार नामना - पुस्तकालयना व्यवस्थापक भाई श्री नानालाल नाथाभाई शाहे जे भाग भजन्यो छे, ते बद्दल तेमनो पण मारे अहिं आभार मानवो जोईए. -- --मुनि जिनविजय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003407
Book TitlePalipathavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherGujarat Puratattva Mandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages118
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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