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पालिपाठावली ४८. धनियसुत्त
धनियो गोपो
पक्कोदनो दुद्धखीरो हमस्मि, अनुतीरे महिया समानवासो । छन्ना कुटि आहितो गिनि, अथ चे पत्थयसी पवस्स देव ॥१॥
भगवा
अक्कोधनो विगतविलो हमस्मि, अनुतीरे महियेकरत्तिवासो ।
विवटा कुटि निब्बुतो गिनि, अथ चे पत्थयसी पवस्स देवा॥२॥ धनियो गोपो
अन्धकमकसा न विजरे, कच्छे रूळ्हतिणे चरन्ति गावो । वुट्टिम्पि सहे युं आगतं, अथ चे पत्थयसी पवस्स देव ॥ ३ ॥
भगवा
वद्धा हि भिसी सुसंखता, तिण्णो पारगतो विनेय्य ओघ ।
अत्यो भसिया न विज्जति, अथ चे पत्थयसी पवस्स देव ॥४॥ धनियो गोपो
गोपी मम अस्सवा अलोला दीघरत्तं संवासिया मनापा ।
तस्सा न सुणामि किञ्चि पापं, अथ चे पत्ययसी पवस्स देव।।५।। भगवा---
चित्तं मम अस्सवं विमुत्तं, दीघरत्तं परिभावितं सुदन्तं ।
पापम्पन मे न विजति, अथ चे पत्ययसी पवस्स देव ॥ ६ ॥ धनियो गोपो
अत्तवेतनभतो हमस्मि, पुत्त च मे समानिया अरोगा।
तेसं मे सुणामि किञ्चि पापं, अथ चे पत्थयसी पवस्स देव ॥७॥ भगवा---
नाहं भतकोस्मि कस्सचि, निब्बिटेन चरामि सब्बलोके । अत्यो भतिया न विजति, अथ चे पत्थयसी पवस्स देव ॥८॥
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