SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ २ ] राजाओं और राजपुरुषों को कुछ स्वाभाविक दुर्बलतानों के कारण किस प्रकार राज्यों में षड्यंत्र, हत्याकाण्ड तथा प्रतिशोध आदि हुआ करते थे उसकी भी कुछ झलक यहाँ प्राप्त हो सकती है । ___ जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है कि इस ग्रंथ की सब से बड़ी विशेषता भाषागत सरलता है। अतः इसके यहाँ पर कुछ उदाहरण दे देना अनुचित न होगा। उदाहरण के लिए एक पुरुष रात में किसी दूसरे व्यक्ति से अपने घर की याद करता हुआ कहता है 'माता नास्ति पिता नास्ति नास्ति भ्राता कुटुम्बकः । एकाकिनी च मे भार्या कथं रात्रिर्गमिष्यति ॥" कहीं-कहीं पर दूसरे ग्रंथों से भी कुछ सुभाषितों को ले लिया है। इसी प्रकार के निम्नलिखित पद्य पंचतंत्र से संगृहीत हुए हैं "दानं भोगो नाशस्तिस्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य । यो न ददाति न भुंक्ते तस्य तृतीया गतिर्भवति । तावद् भयाच्च भेतव्यं यावद्भयमनागतम् । आगतं तु भयं दृष्ट्वा प्रहर्तव्यमशंकितैः ॥" प्रस्तुत ग्रंथ में समाविष्ट प्राख्यान के तीनों संस्करण इस प्रकार के उन अनेक ग्रंथों के प्रतिनिधि स्वरूप हैं जो इस प्रतिष्ठान में संग्रहीत हैं और जो इस बात को प्रमाणित करते हैं कि हमारे देश में भाषा सिखाने की दृष्टि से इस प्रकार का सरल काव्य-साहित्य भी प्रचुर मात्रा में लिखा गया । इस प्रकार की रचनाओं का प्रयोग अब भी संस्कृत के प्रचार और प्रसार में सहायक हो सकता है, इसी दृष्टि से इसका प्रकाशन किया जा रहा है। आशा है संस्कृत के शिक्षक और प्रचारक इस प्रकार के साहित्य से लाभ उठावेगा । ९-२-६८ जोधपुर फतहसिंह
SR No.003406
Book TitleNanodopakhyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajasthan Prachyavidya Pratishthan
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year
Total Pages30
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy