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________________ बुद्धि-विलास [ १५७ सोरठा : नाम कुंड के जांनि, यक अरिहत केवलि तनौ' । फुनि केवलि सोमांनि, तीजौ गणधर को कह्यौ ॥१३४१॥ चौपई : तिनकै तीर विव जिन तीन, पधरावै जुत छत्र नवीन । वन कुंडनि मैं अग्नि धराय, वहु सुचि दर्व्य हौमि सुषदाय ॥१३४२॥ दोहा : है क्रियानि के मंत्र वहु, होय पूज के ताहि । लषियो आदि पुराणं मैं, किया करौ जो चाहि ॥१३४३॥ चौपई : पढि पढि मंत्रनि आहुति देय, मंत्र गृथ मैं भाषे जेय । पूजा करि के घरि पावंत, यह प्राधान' क्रिया है संत ॥१३४४॥ या विथि सवै क्रिया मैं जांनि, पूजन कुंड होय तू ठांनि । जिन-मंदिर मांही कीजिए, क्रिया क्रिया मैं करि लीजिये ॥१३४५॥ गर्भ थकी जु मांस तीसरे, पूजा होम पूर्ववत करै। निज घरि तोरण कुंभ बंधाय, भेरि आदि वाजिन' वजाय ॥१३४६॥ दूजी प्रीतिक्रिया यह जानौं, वहुरि मांस पांचवें वषानौं । करि के होम अगनि दे साषी, त्रितिय सुप्रीतिक्रिया यह भाषी ॥१३४७॥ तिय अभिलाष मांस सातवें, आदर करि बहु विधि पूरवै। घृति किरिया यह चौथी भनी, फुनि सुनि नवां महीना तनी ॥१३४८॥ जैनी ब्राह्मण ते मंत्राव, मौली सूत्र सु कटि वंधवावै । मन मानत भूषण पैहरावै', मोद क्रिया सु पंचमी गावै ॥१३४६॥ वालक होत जाति-क्रम करै, सो प्रयोद्भव किरिया वरै। दिवसि वारहैं जिनके नाम, ऐक-सहश्र-आठ अभिराम ॥१३५०॥ तिन मधि नाम दास सिंह धरै, नाम क्रिया ताकौं ऊचरै। दूजे तीज मांसि वतावै, वह विधि के वाजिन वजावै ॥१३५१॥ गृह प्रसूतित वाहरि ल्याव, वहिर्यान यह क्रिया कहावै । सज्ज्या वालक जोग्य रचांहीं, ताहि निषद्या क्रिया कहांहीं ॥१३५२॥ १३४१ : १ तरणौं। १३४४ : १ अधांन । १३४६ : १A वाजिम । १३४६ : १ पहरावं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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