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________________ १५२ ] बुद्धि-विलास त्वछ अधिक' द्विज सव तै घाटि, दौरत हो साहनकी हाटि । करि प्रयोग राजा वसि कियौ, माधवेस' नृप गुर पद दियौ ॥१२६०॥ गलता वालानंद दै आदि, 'रहे झांकते वैठे वादि। सव को ताहि सिरोमनि कियौ, फुनि२ वैसनू राज पद दियौ ॥१२६१॥ लियौ आचमन पाव पषार', सौंप्यौ ताहि राज सव भार । दिन कितेक वीते हैं जवै, महा उपद्रव कीनौं तवें ॥१२६२॥ हुकम भूप कौ लैंक चाहि, निसि जिमाय देवल दिय ढाहि । 'अमल राज को जैनी जहां, नांव न ले जिनमत कौ तहां'१ ॥१२६३॥ सोरठा : अंवावति मैं ऐक, स्यांम' प्रभूकै२ देहुरै। रही धर्म को टेक, वच्यौ सुं जान्यौं चमतक्रत ॥१२९४॥ चौपई : कोऊ पाधो कोऊ सारो, वच्यौ जहां छत्री रषवारो। काहूमैं सिवमूरति धरि दी, असे मची स्यांम की गिरदी ॥१२६५॥ चौपई : और देव देवी रषिपाल', भट्टारक जतिवर सु विसाल। तेरहपंथी ढूंढ्या प्रवे, फुनि सहु भेष ग्रहस्थ हू सवै ॥१२६६॥ स्वेतांवर पंडित है' आदि, 'होणहार वसि ह के वादि'२ । काहू तें न इतीहू करी, फटकारे ते 'षल मति हरी ॥१२९७॥ निज मत भिष्ट करै जो कोय, ताहि विगारें अघ नहि होय । काहू देवन धारी भेष, ताकौ' फल कछु दियो विसेष ॥१२९८॥ अकसमात कोप्यौ नृप भारो,' दियो दुपहरा देस निकारो। दुपटा धोति धरै द्विज निकस्यौ, तिय जुत पाय न लषि जग विगस्यौ ॥१२६६॥ १२६० : १ हुतौ। २ दौडि पात। ३ चीठी। ४ राज। ५A माधवंस । १२६१ : १ 'सबै भृष्ट करिडारे वादि'। २ फुनि not there! ३ बईसनूं। १२६२ : १ परि। १२९३ : १ 'जहां अमल राजा को चेत। तहां जैनि कोऊं नांव न लेत' ॥१२९८॥ १२६४ : १ सांव। २ लातरणों। १२६६ : १ रक्षपाल । १२९७ : १ दे। २ 'करामाति षो वैठे वादि'। ३ हुई। ४ 'मूसी मुई'। १२६८:१षोटो। १२६६ : १ अकस्मात 'फल लह्यो तिवाडी', दोपहरां निज टांटि उघाड़ी। कटे पयादै तिय जुत पुरते, देत हुररिया लरिका उरते ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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