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________________ ५२] भारतीय विद्या अनुपूर्ति [तृतीय "सविनय प्रणाम. आपका पत्र ता. २६. २. ३९ का मिला। पुस्तकका पार्सल भी मिला। 'साहित्य संशोधक' में हरिगुप्तका उल्लेख देखा। वह अंक रख लिया है। गुप्त शिक्कोंके बारेमें हमारा Catalogue तैयार करेंगे तब काम आयगा। ग्रन्थमालाका काम अच्छी तरह चल रहा है यह जान कर पूर्ण सन्तोष हुवा। यहां रखी हुई पुस्तकोंके अहमदाबाद भेजनेका प्रबन्ध शीघ्र करा देंगे। सिरीझके कवरपेजके कागजका रंग बदलनेके पक्षपाती हम नहीं है । हमें केशरिया रंगसे कोई मोह नहीं है। मगर जो रंग पहलेसे व्यवहार करने लग गये हैं उसीको कायम रखनेसे उसकी एक विशिष्टता रहेगी। दूरसे देख कर ही लोक पहचान जायंगें कि यह "सिंघी सिरीझ' है। और इन्हीं बातोंको सोच विचार कर अपने केशरिया रंग पसन्द किया था। उस वक्त भी दूसरे दूसरे फेशनेबल रंग मिलते थे परन्तु कई बातोंको ध्यानमें रखते हुए पुराने फेशनका "केशरिया बागा" ही इसके लिये पसन्द किया गया था। हां रंग यही या इससे मिलता जुलता रख कर जात या quality बदल दिया जाय तो कोई हर्ज नहीं। यह सब जिल्दके कागजके लिये है, अन्दरके मेटरके लिये तो जिस ग्रन्थमें जैसा अच्छा हो वैसा दिया जा सकता है। पू० माजीकी तबियत वैसी ही है। सारे शरीरमें दर्द रहता है। उन्होंने आपको प्रणाम लिखनेको कहा है। हमारी तबियत ठीक ही चल रही है। और सब अच्छे हैं । चि. राजेन्द्रसिंह त्रिपुरी काँग्रेसमें जायंगें वहांसे शायद बंबई जाय। आप अगर त्रिपुरी आये तो वहां, नहीं तो बंबईमें वे आपसे मिलेंगे। और आपकी तबियत ठीक रहती होगी, लिखियेगा।" ___ आपका विनीत-बहादुरसिंह इसके बाद, ता. २९.४.३९का लिखा हुआ उनका निम्नगत पत्र मिला, जिसमें कलकत्तेसे ग्रन्थमालाका जो सारा स्टॉक अहमदाबाद भेजना निश्चित हुआ था उसके विषयके समाचार थे। “सविनय प्रणाम. आपका कृपापत्र अक्षयतृतीयाका यथासमय मिला। ग्रन्थमालाकी सब पुस्तकें आपके पास भेज देनेके लिये चि. राजेन्द्रसिंहसे कहा हुआ था, मगर इन दिनोंमें उनको कई दफे बहार जाने के कारण तथा और और कामोंमें व्यस्त रहने के सबब वो इस कामको करा नहीं सके। आज हम खुद सब पुस्तकें निकलवा कर धूपमें दिलवा कर साईझ माफिक पेकिंग केसका आर्डर दे दिया है । पेकिंग केस आ जानेसे अपने सामने पेक करवा कर तीन - चार रोजके अन्दर रवाने करा देंगे। आपका रहना तब तक वहां हो जब तो ठीक है, नहीं तो हम अहमदाबाद रेल्वे स्टेशनका बुक करके रेल्वे रसीद आपको बम्बई भेज देंगे। आप फिर अहमदाबादमें जिनको भेजना हो भेज कर पुस्तकें रखनेकी व्यवस्था करवा दीजियेगा। हमने यहां हरेक पुस्तककी पचास-पचास कापियां रख ली हैं। अब जो जो पुस्तकें तैयार होती जाय उनकी ५०-५० कापी यहां भेजनेकी कृपा कीजियेगा। ___ कवरके लिये केशरिया कागज नये जातका आपने भेजा वो बिल्कुल ठीक है। Stiff Cover के उपर चिपकानेके लिये तो इतने मोटे कागजकी जरूरत नहीं इससे पतला ही शायद ठीक रहेगा। Paper Cover वालोंमें यह ठीक रहेगा-फिर जैसा आप उचित समझें । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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