SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५० ] भारतीय विद्या अनुपूर्ति [ तृतीय हमको इस बातका तो पूरा भरोसा है कि आप इस प्रवृत्ति में सहयोग देने पर भी ग्रंथमला काम में किसी प्रकारकी शिथिलता नहीं आने देंगे । परन्तु उत्साहके वश सिर पर कार्यभार ज्यादह ले कर स्वास्थ्यभंग न हो जाय इस बातका हमेशां खयाल रखनेके लिये हमारा अनुरोध है । मुंशीजी हमें याद करते हैं और मिलनेकी इच्छा रखते हैं- जान कर खुशी हुई । उनसे मेरा प्रणाम कहियेगा । मिलना तो कभी संयोगवश होगा तब ही होगा। कारण उनका कलकत्ते से और हमारा बम्बई से विशेष सम्बन्ध न होनेसे ज्यादा आने जानेका मौका नहीं आता । श्रद्धेय पण्डितजीकी तबियत अब ठीक है और दो - तीन दिनमें अहमदाबाद से बनारस जायंगे जान कर बडी प्रसन्नता हुई । एकाएक उनके बीमारीकी खबर पा कर हम लोगोंको इतनी अधिक चिन्ता हुई थीं कि कुछ लिख नहीं सकते। यह तो हम लोगोंका, जैन समाGar और देशका सौभाग्य कहना होगा कि इस दफे इस असाधारण विपत्तिसे उनकी प्राणरक्षा हुई। और पूज्य माताजी और हम ता. २१ को यहांसे निकल कर मांडोली जा रहे हैं । जाना तो सीधे रास्ते देहली हो कर ही होगा । बम्बई होते हुए जाना तो तब ही बन सकता था जब हम अकेले होते। वहां दो तीन महिने रहनेका प्रोग्राम है । मगर हम अकेले दिवाली पर १०-१५ रोजके लिये कलकत्ता आनेका इरादा करते हैं। आपसे मिले बहुत दिन हो गये इसलिये मिलनेको दिल चाह रहा है । इसके अलावा आगमादि तथा कथावार्तादिक ग्रन्थ इस ग्रन्थमाला में निकालना या नहीं आदि आवश्यक बातें भी करने की है । मौसम भी उस वक्त अच्छा है। यदि आपको किसी प्रकारकी असुविधा न हो तो उस वक्त एक दफे आप कलकत्ते आ जांय तो अच्छा होगा । और हमारा स्वास्थ्य श्रीगुरुदेवकी कृपासे अब प्रायः पूर्ववत् ठीक हो गया है, परन्तु सतर्क रहना पडता है। आपके स्वास्थ्यके तर्फ हमेशां ध्यान रखते रहियेगा जिससे साहियकी, समाजकी और देशकी सेवा ज्यादेसे ज्यादे बन पडे । चि. राजेन्द्रसिंह हमारे साथ जा रहे हैं। मांडोलीमें २ - ३ रोज ठहर कर अहमदाबाद जाकर अपनी स्त्री और लडकेको ले कर कलकत्ते जांयेंगें । चि. वीरेन्द्रसिंह और उनकी बहु मांडोलीमें करीब १॥ महीनासे हैं और अभी कुछ रोज वहीं रहेंगें । सं० १९९५, आखिन वदि ६ आपका विनीत बहादुरसिंह इस पत्र पढने से मालुम होगा कि 'भारतीय विद्या भवन' की योजना और स्थापना का सिर्फ प्रारंभिक परिचय ही मैंने जब सिंघीजीको लिख भेजा तो उसे देख कर वें इसके प्रति कैसे सहानुभूतिवाले और इसकी सफलताके लिये कैसे आशावाले हो गये थे । उनकी इच्छानुसार उस वर्षके डीसेम्बर ( सन् १९३८ ) में मैं कलकत्ते गया और कुछ दिन तक उनके साथ रहा। इस समय उनके संग्रहमें जो मुगल, राजपूत और कांगरा स्कूल के सैंकडों ही फुटकर चित्र थे उनको मैंने ठीक व्यवस्थित करनेका प्रयत्न किया और आल्बमके रूपमें उन्हें सजाया । सिंघीजी भी इस काममें बराबर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy