SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२] भारतीय विद्या अनुपूर्ति [ तृतीय सिंधीजी कुछ दिन वहीं रहे और फिर श्री शान्तिविजयजी महाराजकी आज्ञा मिलने पर वे कलकत्ता गये। मेरा शान्तिनिकेतन छोडना उदयपुरमें रहते हुए ही शान्तिनिकेतनके निवास आदिके विषयमें हमने निर्णय कर लिया था कि ग्रन्थमालाके कार्यकी दृष्टि से और मेरे निजके स्वास्थ्यकी दृष्टिसे भी वह स्थान उपयुक्त नहीं है, इसलिये अब उसे सर्वथा छोड कर ग्रन्थमालाका कार्यालय अहमदाबाद ही में स्थिर करना ठीक होगा। तदनुसार मैं सन् ३५ के जुलाई में, शान्तिनिकेतनका सब सामान उठा देने और उसकी उचित व्यवस्था करनेके निमित्त आखिरी वार वहां पर गया। पिछले ४ वर्षके निवासके कारण एवं छात्रावासके निमित्तसे वहां पर बहुत कुछ सामान जमा हो गया था । बासन-वर्तन आदि छोटी छोटी चीजोंके अतिरिक्त, लकडीके तख्तपोश, रेकस् , डेस्क और अनाज भरनेके बडे बडे टीन आदि सेंकडों ही रूपयोंका ओर ओर भी भारी सामान था, जिसकी क्या गति की जाय? क्या उसे कलकत्ता मेज दिया जाय? या और कुछ व्यवस्था की जाय ?- इसके बारेमें मैंने सिंघीजीसे पत्र लिख कर पूछा तो उन्होंने जवाब में (ता. २९-७-३५ को) लिखा कि ... "सविनय प्रणाम. आपका कृपापत्र आज मिला, हाल मालूम हुआ । बोर्डिंगका कोई सामान कलकत्ते में काम आने जैसा नहीं है। फिजुल खर्चा करके यहां भेजने में कोई फायदा नहीं है । बनारस पंडितजीके उपयोगमें आने लायक कोई चीज हो तो उसे वहां भेज दें। बाकी सब वहीं 'शान्तिनिकेतन' को या किसी खास व्यक्तिको आवश्यक हो तो उन्हें दे कर खत्म कर दें।" सिंघीजीकी इस सूचनानुसार, जो सामान शान्तिनिकेतन आश्रमको देने लायक था वह तो उसे दे दिया और बाकी का अन्यान्य व्यक्तियोंको-जिनमें आचार्य श्रीक्षितिमोहन सेन आदि कई सजन सम्मीलित थे-समर्पित कर दिया। इस तरह वहांका सब काम समाप्त कर फिर मैं कलकत्ते गया। सिंघीजीके निवासस्थानका परिवर्तन सिंधीजीने भी प्रायः इसी समय अपना निवास स्थान बदला। कई वर्षोंसे वे लोअर सर्युलर रोड पर किरायेकी कोठीमें रहते थे। अब वे बालीगंजमें अपनी निजकी बडी भारी विशाल बाडीमें रहनेको आये । इस बाडीमें उन्होंने अपने परिवारके रहनेके लिये जुदा जुदा मकान बनानेकी दृष्टिसे वर्षोंसे प्लान बना रखे थे। परंतु तुरन्त वे सब मकान तैयार हो सके वैसा नहीं था और उनकी इच्छा अब उसी बाडीमें आ कर रहनेकी तीव्र हो गई थी-सो एक काम चलाउ मकान अपने तीनों पुत्रोंके रहनेकी दृष्टिसे, बडी शीघ्रतासे नया बनवा लिया; और दूसरा जो एक पुराना बडा मकान उस बगीचे में था उसको सुधरवा कर, और उसके आगेको हिस्सेको, नये ढंगसे, आधुनिक डिझाइनका आकार दे कर, अपने रहने लायक करवा लिया। मैं जब उक्त रीतिसे शान्तिनिकेतनके सामानकी व्यवस्था कर रहा था, तब मुझे मालूम हुभा कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy