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________________ वर्ष ] श्री बहादुर सिंहजी सिंघीके पुण्य स्मरण [ ३३ कर मेरे कमरे में आये तो उन्होंने देखा कि मैं काम कर रहा हूं और मच्छड़ मुझे बुरी तरह सता रहे हैं । उसी समय अपने कमरे में जा कर वे ५-७ अगरबत्ती ले आये और उनको सुलगा कर सारे कमरेमें खडे खडे इधर उधर उनको घुमाते रहें । कोई घंटे डेढ घंटे तक वे इस तरह करते रहें और मेरे पाससे मच्छड़ोंको दूर भगाते रहें । मैंने कहा 'बाबूजी, आप क्यों इतना कष्ट उठा रहे हैं ? जाइये और सोइये । हमको तो ऐसी बातोंकी आदत पडी हुई है। हम तो सारी रात इसी तरह बैठ कर अपना काम करते रहेंगे।' उन्होंने कहा- 'हम तो ३-४ घंटे खूब मजे में सो लिये हैं और आप तो सारी रात इसी तरह बैठे बैठे काम कर रहे हैं। हमसे और कुछ नहीं बने तो हम इतनी सेवा तो करें" इत्यादि । सिंघीजीकी उस रातकी वह शुश्रूषा-वृत्ति और कार्यकी उत्सुकता मुझसे कभी न भूली जाय वैसी मेरे हृदयमें जमी हुई है । उनके जैसे धनिक, सुखशील और राजसी स्वभाववाले व्यक्तिके दिलमें ऐसी ज्ञानभक्ति और सेवावृत्ति हो सकती है, इसकी मुझे कभी कल्पना नहीं हुई थी । मैं उनके कथनको सुन कर मुग्धसा हो गया - - और बहुत देर तक उनकी तरफ देखता रहा । मैंने देखा कि उनके मुखपर एक प्रकारकी प्रसन्नता और नम्रताकी प्रभा फैली हुई है और वे शान्त एवं सहज सन्तोषमें निमन है । श्रीमुन्शीजीका उदयपुर आना दूसरे दिन श्रीमुंशीजी भी दिगम्बर पार्टी के कॉन्सलके तौर पर वहां आ पहुंचे। उन्होंने भी आते ही कोर्टके काम में बडी चपलता पैदा कर दी और अपने पक्ष जो मुद्दे साबीत करने थे उनके विषय में स्पष्ट निर्देश कर दिया। अभी तक जितने प्रमाण और पुरावे दाखिल किये गये थे और जिस ढंगसे उन पर विचार हुआ था उन सबको उन्होंने काट-छांट कर उनमेंसे कुछ महत्वके प्रमाणों पर ही विचार करना आवश्यक बतलाया और बाकी सबको निकाल अलग किया । इधर श्री मोतीलालजी और उधर श्रीमुंशीजी जैसे बंबई हाईकोर्ट के सबसे बड़े प्रसिद्ध और अखिल भारतीय प्रतिष्ठावाले कानूनके पारगामी विद्वान् वहां उपस्थित होनेसे, स्टेटके सारे atararणमें और खास कर उस कमिशनके काम में बडी सजीवता और तत्परता उत्पन्न हो गई । श्रीमोतीलालजी और श्रीमुंशीजी दोनों स्टेट गेस्ट थे और स्टेटके गेस्ट हाउसमें ही वे ठहरे थे। दोनोंके कमरे पास-पास में थे । हम लोग रातको ८ बजे अपने कॉन्सल श्री मोतीलालजी से परामर्श करनेके लिये और अगले दिनके प्रमाणों और दलीलोंकी चर्चाके लिये मीटींगके रूपमें वहां गेस्ट हाउसमें इकट्ठे होते । सामनेकी पार्टीवाले सज्जन भी उसी तरह श्रीमुंशीजी के साथ परामर्श करने एकत्र होते । व्यावसायिक कामकाजके खत्म होने पर, पहले ही दिन मैं श्रीमुंशीजीकी रूममें मिलने गया, तो देखा कि वे अकेले बैठे हुए अपने केसके ५००-६०० पेज उथला रहे हैं और उनमें कुछ तथ्य है या नहीं इसकी खोज कर रहे हैं। बोले- 'मुझे तो इस केस के बारेमें इसके पहले एक अक्षरका भी पता नहीं था । बंबई से आते गाडीमें कल रातको जो कुछ इन कागजोंमेंसे सार निकाल सका उसके कुछ फुटकर नोटस् कर लिये हैं और इसी परसें ३.५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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