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________________ अंक १] गुणाढ्य कविनी बृहत्कथानो आदि श्लोक [२२९ कल्पना शी रीते करी शकाय. नमिसाधुए, रुद्रटना काव्यालंकार ग्रंथ उपर पोते करेला टिप्पणमां, पैशाची भाषानां खरूपद्योतक जे केटलाक शब्दो उद्धरेला छे तेना अन्ते लख्यु छ के- "इत्यादयोऽन्येऽपि बृहत्कथादिलक्ष्यदर्शनाज्ज्ञेया इति ।" (२, १२) अर्थात् आ जातना बीजा पण अनेक शब्दो बृहत्कथा आदिमां मळी आवता स्वरूपानुसार जाणवा. आ उपरथी आपणने अनुमान करवानुं कारण मळे छे, के आचार्य हेमचन्द्रे पोताना व्याकरणमां आ भाषाना नियमोना उदाहरणरूपे जे शब्दो अने वाक्यांशो आप्या छे तेमांना केटलाक बृहत्कथामांना होवा जोइए. अने एथी ज डॉ० पिशले पोताना प्राकृत भाषाओना महान् व्याकरण ग्रन्थमां, आ जातनुं खास संभवित अनुमान करेलु जणाय छे. खास करीने हैमव्याकरणना पैशाची भाषाना प्रकरणना सूत्र ३१०, ३१६, ३२०, ३२२ अने ३२३ मां जे वाक्यांशो आपेला छे ते बृहत्कथाना होवानो संभव छे एम तेमणे विधान कर्यु छे अने ते साथे सूत्र ३२६ मा जे गाथा उद्धृत थएली छे ते पण 'कदाचित्' एज ग्रंथनी होय एम तेमणे सूचव्यु छे.' पिशलना आ कथनने, जे. एस्. स्पेयेर नामना डच विद्वाने पोताना 'कथासरित्सागर विशेना अभ्यास' (Studis about Kathasaritsagara) नामना ग्रन्थमां खीकरणीय मान्युं छे. परंतु आ अनुमानने पुष्टि आपे एवो कोई प्राचीन उल्लेख अद्यापि प्रकाशमां आव्यो होय एवं मारी जाणमां नथी. हुं अहिं आजे एवो एक उल्लेख प्रकाशित करूं छं जे विद्वानोने मनोरंजक थशे अने छेवटे बृहत्कथाना एक पद्यनी निश्चित प्राप्तिथी आपणने आल्हाद थशे. ए उल्लेख भोजदेवना सरखतीकंठाभरणनी आजडकृत टीकामांथी प्राप्त थाय छे, जेनी अद्यावधि ज्ञात एवी मात्र एकज, अने ते पण त्रुटित, प्रति पाटणना जैनभंडारमा ताडपत्र उपर लखेली मळी छे. प्रति खण्डित होवाथी अने अन्तिम भाग अनुपलब्ध होवाथी ए वृत्तिकार आजडना समय आदि माटे एमांथी कशो विशेष उल्लेख प्राप्त थई शकतो नथी. परंतु, प्रथम प्रकाशना अन्ते एणे पोतानो परिचायक आ प्रमाणे उल्लेख कर्यो छे__ "इति भाण्डशालिपार्श्वचन्द्रसूनोः श्रीआजडस्य कृतौ पदप्रकाशनाम्नि सरस्वतीकण्ठाभरणालंकारटीकाविषमपदोपनिबन्धे प्रथमः परिच्छेदः ॥ ग्रं० ५२० । १ जुओ, पिशलनुं प्राकृतव्याकरण, पृ. २८. २ उक्त निबन्ध, पृ. २९. Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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