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२२० ] भारतीय विद्या
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हिव तिवार जवारक वावीइ । बहुल मंडप छांह करावीह । सइणि लोक अगासइ पुढणां । शयनि तेह सहइ नवि ओढणां ॥ श (शि) शिरचंदनि अंग विलेपीइ । कदलिने दलि वाउ स वीजीइ । पृथु नितंब सुपीन पयोहरा । चरण चंपइ नारि मनोहरा ॥ ६६ विशद विमल फाली, अंगि लागी सूयाली | पहिरीय वर बाली, हारु वारू मृणाली । वलि वलि गलि लागी, कामनुं तत्त्व जागी । विलसइ इम रागी, तापनी भ्रांति भागि ॥ ६७
रमइ शैवलिनी नलिनी घणउं । सलिल शीताल झीलइ झीलणउं । करि सुरंगीय सीगीय छांटणउं । वलीय हासइ नासइ आंटणउं ॥ ६८
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इसी अनेसी जलकेलि कीधी । अनंगलीला ललना सु कीधी । हिवं सु वर्षारितु विश्व व्यापउ । प्रजातणइ मानसि हर्षु थाप्यउ || ६९ अथ वरसालावर्णनम् ।
धडहडी धडकइ धर धूंधली । झलहली झबकइ अनु वीजुली । गडयss गणंगणि मेहडउ । तरुणि जोवणि गाजर नेहडउ || ७० जलधर जलधारा, रात्रि घोरांधकारा । विरहिणि निरधारा, ते मनोविकारा ।
खलहल जलु वाजइ, मेह आकासि गाजइ ।
वरिसी नवि भाजइ, विस्वसाधार छाजइ ॥ ७१
दंताल वाहइ जण क्यार गाहइ । मल्हारु गाइ रमणी उछाहिई |
सालूर वासइ कलहंसु नासइ । कुडा विकासइ गिरिराज पासइ ॥ ७२ सरवर सवे पूरयां पाणी भली परि उल्हस्यां ।
नइ प (ख) लहलइ रेलइ छेलइ कूआ जल पालट्यां ।
प्रिय प्रिय सारिं बोलइ बापीहडा खग बापुडा । गिरिशिषरि जे किंगाइ ते महामदि मोरडा ॥ ७३
[ वर्ष ३
दिसि चst चिहुं चंचल आभलां । वन मनोरम कूंपलयां भलां । raft froतृणांकुरुकुला । सु धरिणी रमणी किरि कुंतला ॥ ७४ रुणझुण भमरु भ्रमि भीभलिउ । परिमलिडं वलि पाषलि संमलिङ । विकट कंटक संकट केवडी । सुगुण ए मिलिवा मनि भावडी || ७५
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