SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 366
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१२] भारतीय विद्या [वर्ष ३ कदाच कविनो आदर्श भर्तृहरि के अमरुकना शृङ्गारशतकनुं अनुकरण करवानो होय. संस्कृत भाषामां तो आ जातनी वर्णना अने पद्धतिवाळा भर्तृहरि अने अमरुक सिवाय बीजा पण अनेक शतककाव्यो उपलब्ध थाय छे, परंतु प्राचीन देश्यभाषामां आवी कृतियोनी उपलब्धि विरल ज देखाय छे. प्राचीन भाषाकविता मोटा भागे आपणने रासक छन्दोना बन्धवाळी मळे छे अने तेथी तेमां दोहा, वस्तु, पद्धडी, चतुष्पदी आदि रासकवर्गना छन्दोनोज विशेष उपयोग करवामां आवेलो देखाय छे. संस्कृत काव्यवर्गना इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उपजाति, त्रोटक, स्रग्धरा आदि अक्षरबद्ध वृत्तोनो उपयोग देश्यभाषा अर्थात् प्राचीन गुजराती कवितामां, क्वचित ज प्राप्त थाय छे. आ दृष्टिए पण प्रस्तुत काव्य आपणा प्राचीन साहिल्यनी एक विशिष्ट कृति गणाय तेम छे. __ प्रत्यन्तरना अभावे आ काव्यनी पाठशुद्धि विषे अत्यारे कशो विशेष विचार करी शकाय तेम नथी, मूळ प्रतमां जेवू लखाण मळी आव्यु छे तेवू ज मात्र अत्यारे तो, प्रसिद्धिमां मुकवानी दृष्टिए, अहिं मुद्रित करवामां आवे छे. शोधकोए ए दिशामां प्रयत्न करता रहेवाथी संभव छे के बीजां पण आनां प्रत्यन्तरो मळी आवे अने तेना आधारे, 'वसन्तविलास'नी जेम आ काव्यनी पण संशोधित पाठवाळी अने मूळ भाषासरणिनी दृष्टिए सुसंपादित आवृत्ति प्रकाशमां मुकी शकाय. __ प्राप्त प्रतिनु लखाण तद्दन शुद्ध नथी ए तो एमां स्थळे स्थळे मळता छन्दोना शिथिल बन्धोथी ज आपणे जाणी शकीए छीए. मात्रामेळ छन्दोमां शब्दगतखरोना हख-दीर्धीकरणना प्रयोगथी छन्दःशुद्धि जेमतेम मेळवी शकाय छे अने तेथी कविनो मूळ भाषाप्रयोग केवा रूपमा हतो ते चोक्स रीते जाणवारों के शोधी काढवानुं बहु सरल नथी थतुं, पण अक्षरबद्ध वृत्तोमां तो अक्षरसंख्या अने खरोच्चार निश्चित होवाथी, एमां जो न्यूनाधिकता दृष्टिगोचर थाय तो तेथी पाठनी शुद्धाशुद्धि तेमज भाषाना मूळप्रयोगनी चकासणी सारी पेठे करी शकाय छे. __ आ काव्यनां कुल १०५ पयो छे अने एथी ज एने कर्ताए के पछी लहियाए 'शृङ्गारशत' आq नाम आप्यु होवू जोइए. एमां प्रारंभमां मंगलाचरण के प्रास्ताविक कथन जेवू कशुं करवामां आव्यु नथी तेम ज अन्तमां पण कशो उपसंहारात्मक के समाप्तिवाचक उल्लेख सूचववामां आव्यो नथी. एथी कविए कोइएक विशिष्ट वर्णनना गुम्फननी दृष्टिए आ काव्यनी योजनापूर्वक संकलना करी हती के पछी समये समये मनमा स्फुरी आवता प्रकीर्ण भावोने मुक्तक पद्यो रूपे ग्रथित करी, तेमने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy