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________________ अंक १] बुद्ध अने महावीरनुं निर्वाण [१८५ पासे बुद्ध न जाय अने पोताना नाम द्वारा एमनी नैतिक कीर्ति न वधारे अने ए माटे एमने मगधमाज रोकी राखवा. पण बुद्ध रोकाया नहि. कहेवा प्रमाणे जादुथी, पण मानवा प्रमाणे युक्तिथी, ए गंगाने पेले किनारे पहोंची गया. १२. बुद्धनी जीवनयात्रानो अंत बुद्धना, गंगाने सामे तीरे जवा पछी, आपणे बौद्ध आगमोना लखाणोमांथी राजकीय बनावो विषे कोई ज सांभळता नथी; बुद्धना निर्वाण अने दहन सिवायना बीजा समाचार एमांथी मळता नथी. घणे स्थळे पडाव नाखता नाखता बुद्ध वैशाली तरफ गया अने त्यां नजीकमां आवेला बेलुव नामक गाममां तेमणे अंतिम चातुर्मास गाळ्युं. आपणे तेमना वैशालीना रहेठाण तथा मार द्वारा उभा थयेला अनेक लालचप्रसंगो वगेरे बाबतो अहिं रहेवा दइए. वैशालीमा एमणे जाहेर कयु: "हवे तरतमांज बुद्ध अभीप्सित निर्वाण प्राप्त करशे. आजथी वण मास सुधीमां तथागत अभीप्सित निर्वाणमा प्रवेश करशे" (३,४८,५१). चातुर्मास पछी प्रथम मास कार्तिक आवे छे एटले बुद्ध आ Prophesy भविष्यवाणी प्रमाणे माघ मासना प्रथम पडवाने दिवसे मृत्यु पाम्या होवा जोइए. (Kern, Der Buddhisums, 2, पान ६३). पण आ जणावेली तिथि विषे शक्यता नथी. कारण के वृद्ध अने मांदा बुद्ध वैशालीथी कुशिनगर सुधीनी लांबी मुसाफरी-जेमां अनेक स्थळे मुकामो करवा पडेला-त्रण अठवाडियामां पूरी करी शक्या न होवा जोहए. वळी सूचित परिस्थिति प्रमाणे तो ए मुसाफरीए छएक मास लीधा होवा जोहए - अर्थात् वैशाखनी शरुआतमा ए उद्दिष्ट स्थळे पहोच्या होवा जोइए अने ए ज मासना अंतिम भागमा एमणे देह छोड्यो होवो जोइए. एथी ज महावंस (३,२)मां वैशाखनी पूर्णिमाने निर्वाण तिथि तरीके जणाववामां आवी छे. मने खबर छे ते प्रमाणे कममां कम दक्षिणना बौद्धो निर्वाणोत्सव वैशाख मासमां उजवे छे. अजातशत्रुए वृजिओ सामेनी पोतानी योजना बुद्धना मरण पहेला ज अमलमां मूकी के केम ते नक्की थई शकतुं नथी. बौद्ध आगमोमां ते विषे कंई सूचन मळतुं नथी. १३. जैन आगममां आपेला प्रमाणो जैनोना पांचमा अंग भगवती (७,९,२)मां नीचेनी नहिं जेवी बीना आपी छ: "वजि विदेहपुत्ते जइत्था, नव मल्लइ नव लेच्छइ कासिकोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो पराजइत्था।" विदेहपुत्ते (कूणिके) वृजिओने जीत्या. नव मल्लकिओ अने नव लिच्छ. विओ, काशी अने कोसलना अढार एकत्र थयेला गण राजाओ पराजय पाम्या. १ 'पराजइत्था' कर्तरि (Active) रूप न होई शके; कारण के जो तेम होय तो कर्मनो अभाव छे अथवा पूर्व भागमांथी वजी लेवु पडे - जे अनुचित छे. कारण के १८ गण राजा ओनो समूह, निरयावलि सूत्रमा स्पष्ट जणाव्या प्रमाणे, वृजिओना पक्षमा हतो अथवा 'कासिकोसलगे' एवो सुधारो करवानी जरूर छे. ३.१.२४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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