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________________ अंक १] बुद्ध अने महावीरनुं निर्वाण [१८१ केवलत्व प्राप्त करतां ज एमांथी ए मुक्त थया. तेथी सुधर्मन् जैनोना आखा धार्मिक व्यवस्थातंत्रना उपरी थया. आ जग्याए एमनी पछी जम्बू आव्या. जैन सूत्रोमां महावीर पोतानी शिक्षा मुख्यत्वे गौतमने उपदेशे छे. अने पाछळना समयमां सुधर्मन् तेज प्रवचन पोताना शिष्य जम्बूने शीखवे छे. आ उपरथी जणाई आवे छे के जैन धर्मना व्यवस्थातंत्रना आदि आचार्यों एक बीजा प्रत्ये निखालसताथी वर्तता अने तेथी एमनी बच्चे भेद पड्यानी वात संभवती नधी, त्यारे महावीरमा मृत्यु समये जैनोमां पक्षापक्षी उभी थई न हती ए संपूर्ण चोकसताथी मानी शकाय पक्षो विषे सो आपणने चोकस माहिती पूरी पाडवामां आवी छे.' अने पाछळथी जे खरेखरा पक्षो पड्या ते कई जैनधर्मना मूळ सिद्धान्तोने लइने नहि पण आपणी मान्यता प्रमाणे तो नजीवी बाबतीने लीधे ज. आधी जैनोमां पडेला पक्षी तो उपर उपरना अने प्रमाणमां बहु मोडा विकास पाम्या. अहीं अलबत्त, श्वेताम्बर अने दिगम्बर रूपी भाग उपर आपणी दृष्टि नथी. जो के, ते भागो पण कोई एक समयनी मारामारीने लीधे नहि पण धीमे धीमे उत्पन्न थया हता. Marathi aratni आथी तद्दन जुदी ज हकीकत बनी छे. बुद्धना मृत्यु बाद तरत जसंवतंत्र धार्मिक मान्यताओना ऊंडा विरोधोवाळा अनेक पक्षी पडी गया अने ते समयना वहेण साथै वधता ज गया. ते एटले सुधी के महायानरूपमां एक एवा नवीन भेदे देखा दीधी के जेने बुद्धना मूळ सिद्धान्तो साथे बहु ज थोडुं साम्य छे. बौद्धोए मानी ली के आज जैनोमां बन्धुं हशे. एमने ए मालुम नहि होय - अथवा अंशतः तेणे ए ध्यानमां नहि लीधुं होय - के महावीर कोई एक नवा ज धर्मना संस्थापक न हता पण पार्श्व स्थापला धर्मना सुधारक मात्र हता. एमनां माबाप अने ते पोते पण पार्श्वना उपासक हतां. आ उपरथी त्यारे ए तो तद्दन स्पष्ट बाबत द्वे के केवलिन तरीके सांसारिक बाबतोथी एकदम पर एवा महावीरना निर्वाण समयनी परिस्थिति जोतां तेमना मृत्युना परिणामे जैनोनी कोइ रोते हीनस्थिति थाय एवो संभव न हतो. बौद्धोए ए हीनस्थितिनुं वृत्तांत खोटां अनुमानो उपर रच्युं छे अने पाछळना समयमा धार्मिक मान्यता माटे उभी थयेली आवश्यकता अर्थे ए वृत्तांतने प्रचलितरूप आप्युं. ६. आ भूलभरेलुं वृत्तांत शी रीते उत्पन्न थयुं ? उपर जणावेलां व्रण बौद्ध सूत्रो - जे जैनोनी कहेवाती हीनस्थितिना उद्गमस्थान छे- निर्वाण पछी बीजी के नीजी सदीमां रचाएला होवां जोईए. सूत्रोमां आ अति आश्चर्यजनक भूल शी रीते प्रवेशी ? आनुं साधुं कारण जाले शार्पेन्टीएरे क्यारनुय १. Leumann, Die alten Berichte von der Schismen der Jaina. Ind. Studen. XVII, p. 91. 3. Jacobi, Uber die Entstehung der S'vetambara und Digambara Sekten. ZDMG. Bd. 38, p. 1. ३. आचाराङ्गसूत्र २, १५, १६ SBE XXII, p. 194. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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