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अंक १]
श्रीसिद्धसेन दिवाकरना समयनो प्रश्न [१५३ महाभाष्यो रच्यां छे जेमांथी विशेषावश्यकभाष्य तो तेमनो आकर तेम ज सर्वशास्त्रसंदोहनरूप गंभीर ग्रन्थ छ । अन्य ग्रन्थोनी रचना साथे आवा विस्तृत, गंभीर अने परिपक्क ग्रन्थनी रचना तेम ज साधुजीवन-सुलभ आयुष्यनो विचार करतां एम लागे छे के क्षमाश्रमणजीनो जीवनकाल विक्रमना छठा सैकाना अंतिम भागथी सातमा सैकाना त्रीजा पाद सुधी लंबाएलो होय तो ए विशेष संभवित छ । जिनभद्र क्षमाश्रमणे पोताना ए महान् ग्रन्थमां अने लघु ग्रन्थ विशेषणवतीमां सिद्धसेन दिवाकरना उपयोगाभेद-वादनी तेमज दिवाकरनी कृति सन्मतितर्कना टीकाकार मल्लवादीना उपयोगयोगपद्य-वादनी विस्तृत समालोचना करी छे । आ ऊपरथी एटलुं तो सिद्ध छे के मल्लवादी अने सिद्धसेन दिवाकर ए बन्ने जिनभद्रगणि करतां अनुक्रमे पूर्व अने पूर्वतर छ । ए पौर्वापर्य केटलं होवु जोइए एज अहिं विचारणीय छे । मल्लवादीना द्वादशारनयचक्रना विनष्ट मूलनां जे प्रतीको तेना विस्तृत टीकाग्रन्थमां मळे छे तेमां दिवाकरनुं सूचन छे पण जिनभद्रगणिर्नु सूचन नथी। एटले मल्लवादी जिनभद्रगणि करतां पहेलां थया छे एम फलित थाय छे । मल्लवादीए सिद्धसेन दिवाकरना सन्मतितर्क ऊपर टीका रचेली जेनो निर्देश आचार्य हरिभद्र करे छे । एटले सिद्धसेन मल्लवादी करतां पूर्ववर्ती छे ए पण स्वतःसिद्ध छ। मल्लवादीने विक्रमना छट्ठा सैकाना पूर्वार्धमां मानीए तो सिद्धसेन दिवाकरनो समय जे पांचमी शताब्दी धारवामां आवेलो ते वधारे संगत लागे छे।
वधारे संगत कहेवाना पक्षमा बीजुं पण सबल प्रमाण छे अने ते पूज्यपाद देवनंदीए करेल विश्वस्त उल्लेखोर्नु । देवनंदीए पोताना जैनेन्द्रव्याकरणमां 'वेत्तेः सिद्धसेनस्य' ए सूत्रमा सिद्धसेननो मतविशेष नोंध्यो छे । ते ए छे के सिद्धसेनना मत प्रमाणे 'विद्' धातुने 'यू' आगम थाय छे; भले ते सकर्मक पण होय । देवनंदीनो आ उल्लेख बिलकुल साचो छ, केमके दिवाकरनी जे कांइ थोडीक संस्कृत कृतिओ बची छे तेमांथी तेमनी नवमी बत्रीशीना २२मां पद्यमा 'विद्रते' एवो '' आगमवालो प्रयोग मळे छ । अन्य वैयाकरणो 'सम्' उपसर्गपूर्वक अने अकर्मक विद् धातुने '' आगम स्वीकारे छे त्यारे सिद्धसेने अनुपसर्ग अने सकर्मक 'विद्' धातुनो 'र' आगमवाळो प्रयोग कर्यो छे । आटली विलक्षणतानी नोंध देवनंदीए लोधी ए तेमनुं बहुश्रुतत्व अने चातुर्य कहेवाय । वळी देवनंदी पूज्यपादनी मनाती सर्वार्थसिद्धि नामनी तत्त्वार्थसूत्र ऊपरनी टीकाना सप्तम अध्यायना १३मा
३.१.२०.
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