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________________ १२८] भारतीय विद्या [वर्ष ३ तत्वार्थ-भाष्य खोपज्ञ है भाष्यकी खोपज्ञतामें कुछ विद्वानोंको सन्देह है; परन्तु नीचे लिखी बातोपर विचार करनेसे वह सन्देह दूर हो जाता है १ भाष्यकी प्रारंभिक कारिकाओंमें और अन्य अनेक स्थानों में 'वक्ष्यामि' 'वक्ष्यामः' आदि प्रथम पुरुषका निर्देश है और निर्देशमें की गई प्रतिज्ञाके अनुसार ही बादमें सूत्रोंमें कथन किया गया है । अतएव सूत्र और भाष्य दोनोंके का एक हैं। २ सूत्रोंका भाष्य करनेमें कहीं भी खींचातानी नहीं की गई है। सूत्रका अर्थ करने में भी कहीं सन्देह या विकल्प नहीं किया गया और न किसी दूसरी व्याख्या या टीकाका खयाल रखकर सूत्रार्थ किया गया है । भाष्यमें न कहीं किसी सूत्रके पाठ-भेदकी चर्चा है और न सूत्रकारके प्रति कहीं सम्मान ही प्रदर्शित किया गया है। _भाष्यके प्रारंभमें जो ३१ कारिकायें हैं वे मूल सूत्र-रचनाके उद्देश्यसे और मूल ग्रन्थको लक्ष्य करके ही लिखी गई हैं। इसी प्रकार भाष्यान्तकी प्रशस्ति भी मूलसूत्रकारकी है। भाष्यकार सूत्रकारसे भिन्न होते और उनके समक्ष सूत्रकारकी कारिकायें और प्रशस्ति होती, तो वे स्वयं भाष्यके प्रारंभमें और अन्तमें मंगल और प्रशस्तिके रूपमें कुछ न कुछ अवश्य लिखते । इसके सिवाय उक्त कारिकाओं और प्रशस्तिकी टीका भी करते। क्योंकि भाष्य प्राचीन है १ तत्त्वार्थकी सुप्रसिद्ध टीका राजवार्तिकके कर्ता भट्टाकलंकदेव विक्रमकी आठवीं शताब्दिके विद्वान् हैं । वे इस भाष्यसे परिचित थे। क्योंकि उन्होंने अपने ग्रन्थके अन्तमें भाष्यान्तकी ३२ कारिकायें 'उक्तं च' कहकर उद्धृत की हैं । इतना ही नहीं, उक्त कारिकाओंके साथका भाष्यका गद्यांश भी प्रायः ज्योंका त्यों दे दिया है। इसके सिवाय आठवीं 'दग्धे बीजे' आदि कारिकाको १- देखो, पं० सुखलालजीकृत हिन्दी तत्त्वार्थकी भूमिका पृ० ४५-५० २- “ततो वेदनीयनामगोत्रआयुष्कक्षयात्फलबन्धननिर्मुक्तो निर्दग्धपूर्वोपात्तेन्धनो निरुपादान इवाग्निः पूर्वोपात्तभववियोगाद्धत्वभावाचोत्तरस्याप्रादुर्भावाच्छान्तः संसारसुखमतीत्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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