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________________ वर्ष] श्री बहादुर सिंहजी सिंघीके कुछ स्मरण [११९ सन् १९३१ में अपने पिताकी स्मृतिमें शान्तिनिकेतनमें 'सिंघी जैन ज्ञान पीठ' की स्थापना की । 'सिंघी जैन ग्रन्थमाला'का प्रारंभ हुआ। , १९३२ में धर्मपत्नी श्रीमती तिलक सुन्दरीका स्वर्गवास हो गया। उनके पुण्यार्थ अन्यान्य दानादि कार्योंके अतिरिक्त कलकत्तेमें जैन भवनकी स्थापनाके निमित्त १५००० रुपये दान किये । , १९३२ से श्रीशान्तिविजयजी महाराजके समागममें आने जाने लगे। , १९३२ में पञ्जाबके गुजरानवाला शहरमें स्थापित 'जैनगुरु कुल'के वार्षिकोत्सवके सभापति बने । , १९३४ में केशरीयाजी तीर्थके केसके मामलेमें विशिष्ट योग दिया। , १९३६ में पहले पहल 'हृदय रोग' का आक्रमण हुआ । , १९३८ के अक्टूबर में मारवाडके मांडोली गांवमें होनेवाली जैनोंकी एक बडी सभाके प्रेसीडेंट बने । , १९३८ के डीसंबरमें अपने पार्कमें न्युमेस्मेटिक (भारतवर्षके प्राचीन ___ निष्कविद्या निष्णातोंकी) कॉन्फरन्सका आयोजन किया । ,, १९३९ में कलकत्तेमें होनेवाले ओसवाल महासम्मेलनके खागताध्यक्ष चुने गये। ,, १९४० में कलकत्तेके भारती महाविद्यालय द्वारा स्थापित 'जैन साहित्य परिषद् के स्थापक- अध्यक्ष चुने गये । । , १९४१ के डीसेंबरमें कलकत्तेमें 'सिंघीपार्क मेला'का बहुत बडा आयो जन किया जिसमें कलकत्तेके सभी बडे बडे लोगोंने और अमलदारोंने पूरा सहयोग दिया। इस मेलेके निमित्त प्रायः ४१००० रूपयोंकी बड़ी रकम इन्होंने रेडक्रॉस फंडको भेंट की। , १९४१ के डीसेंबर ही में कलकत्ताका निवास छोड कर सारे कुटुंबके साथ अजीमगंज जा कर रहने लगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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