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________________ वर्ष ] श्री बहादुर सिंहजी सिंघीके पुण्य स्मरण [ ८३ डाक्टरोंको बुला लिया है परंतु ये लोग कुछ ठीक निदान नहीं कर पाते। तब मैंने कहा 'यदि आप पसन्द करें तो मैं बम्बईसे किसी अच्छे डॉक्टरको बुला लाऊँ । क्यों कि बम्बई में आज कल बहुत नामी नामी डॉक्टर हैं और उनकी ख्याति सारे हिन्दुस्थानमें फैली हुई है । कुछ उनमेंसे अपने अच्छे परिचित भी हैं।' तो वे बोले बम्बई से कोई डॉक्टर यहाँ आवे और एक दो रोज रह कर चला जावे, उसका कुछ मतलब नहीं होता । हमारी प्रकृति कभी कुछ ठीक मालुम देती है तो कभी बहुत ही खराब। इससे दो चार दिन किसी डॉक्टरके रहने करनेसे कुछ ठीक उपचार नहीं हो सकता।' मैंने कहा 'किसी ऐसे ही डॉक्टरको यहां लाया जायगा जो अपनी जरूरत हो तब तक निश्चिन्ततासे रह सके।' इस प्रकारकी थोडीसी बातचीत कर मैं उठ गया और फिर डॉ. रामबाबू और श्रीराजेन्द्रसिंहजी तथा श्रीनरेन्द्रसिंहजी से इस विषय में विशेषभावसे परामर्श किया गया। उसके परिणाममें मुझे तुरन्त बम्बई जाकर किसी नामी डॉक्टरको ले आनेका निश्चय हुआ । तदनुसार मैंने गाडीमें अपनी सीट रीसर्व कराई और ता. ११ जनवरीको मैं वहांसे बम्बई आनेको निकला । सिंधीजीका मन कुछ निश्चित नहीं था; पर उनके पुत्रोंकी खास इच्छा रही कि क्यों न एक दह कलकत्ते से बहारके भी अच्छे डॉक्टरका उपचार कर देख लिया जाय ? मैं निकलते समय फिर उनसे मिलने गया । पासमें माजी बैठी हुई थीं । उनके मुखपर ग्लानिकी वेदना पूर्ण छाई हुई थी। सिंघीजी विशेष निर्विण्णसे दिखाई दिये । मेरा हृदय गद्गद हो गया और छाती दब गई । वे बोले 'क्या आप जा रहे हैं ?" मैंने कहा 'मैं तुरन्त ही वापस आना चाहता हूं। मेरे खयालमें आपकी बीमारी कोई वैसी असाध्य नहीं है, जैसा आप सोच रहे हैं। कुछ ट्रीटमेन्टमें परिवर्तन होनेकी जरूरत है । इससे मैं बम्बई के कुछ अच्छे नामी डॉक्टरोंसे परामर्श करना चाहता हूं। डॉ० रामबाबूने मुझे आपकी बीमारीका पूरा स्टेटमेंट लिख कर दिया है । उसे बम्बईके डॉक्टरोंको बतलाकर उनका अभिप्राय लेना चाहता हूं।' बोले 'अब बम्बईका डॉक्टर क्या और दूसरी जगहका डॉक्टर क्या ? परमात्माके डॉक्टरकी प्रतीक्षा करनी ही ठीक है ।' इतना कह कर वे चुप रहे, तो मैंने अपने मनमें ढाढस बान्ध कर कहा 'आपको इस तरह हताश न होना चाहिये । आपकी बीमारी कोई वैसी गंभीर नहीं है । ईश्वरकी कृपासे सब कुछ ठीक हो जायगा।' इस पर वे बोले 'हमारा तो जो होना होगा सो होगा । परन्तु यदि आप हमारा कहना मानें तो आप इस तरह अब कहीं ज्यादह माना जाना न करिये और अपने स्वास्थ्यकी रक्षा कीजिये । कौन जाने अब फिर कभी मिलना होगा या नहीं ? । उनके ये आखिरी वचन बहुत ही हार्दिक और करुणस्वरपूर्ण थे जिनको सुन कर मेरा हृदय टूट गया और मेरी आँखें डबडबा गई । मैं उनको प्रणाम करता हुआ उठ खडा हुआ, जिसके बदले में उन्होंने भी दोनों हाथ जोडकर बडे सद्भावसे प्रणाम किया । बहुत ही व्यथित हृदयके साथ मैं उनके कमरेमेंसे बहार निकाला। उनके ये शब्द 'कौन जाने अब फिर कभी मिलना होगा या नहीं' मेरे हृदयको मानों छुरीसे काटने लगे और आँखोंमेंसे आंसू गिरने लगे। उस भारी वेदनाको किसी तरह हृदयमें दबाता हुआ मैं मोटर में बैठा और स्टेशन पर पहुंचा । ' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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