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वछा व तांरी, वंसावली
रिमरह. चइ रहीयो करनराय, सुपड्यो खपातल सुजाय । करमसी रह्यो छल लूणकरण, मोटो प्रबल लाघो मोटमन्न ॥.. पिंड रहीयो मेघो सत्रा पाडि, वरसंघतणो अरि घडि विभाग । मुत करमसीह समहर सधीर, भिडीयो संग्राम भाज़ नीभीड.॥ निहसीयो राजधर बांध नेत, खित पडीयो पातल सरिस खेत । बलोचह घडा सरिसइ अबीह, रमरहि घोर हचे रूपसीह ॥ .. " करमसी समोभ्रम सामि काम, सुत लड्यो खेत पडीयो संग्राम । वडहत्थ जइत मोटो वखत्थ, (संग्राम) घणा विछत्र बैठो तखत्त ॥ बलवंत नग्गोकै वास बुद्धि, सहु मित्र सत्र आलो विशिद्ध । जग जेत जैत जाणइं जगत्त, संकोडइ जीता वडा सित्त ॥ प्रारंभ कीयो पतिसाह पूर, सेनारज सूझइ नही सूर । खडि आयो कटकरो ले खंधार, पतिसाह दलेको नहीं पार ॥ राती वह दीनो जइतराय, सूरात नग्गो विटीयो सहाय । . भारथ भिडे कमराज भाज, गरजीया जइत पतिसाह गाज.॥
खेडिया कटक नागोर खान, पह जइत नगारा परखइ प्रधान । चित फेर खान मांडीयो चूक, करि रोस घणो मांगीया रुक ॥ वा ढाल गहइ बोलै कवांण, एहच्छल नीसरीयो आप प्राण । माल दे राऊ बहु कटक मेलि, अधिपति जइतसुं कीयो खेलि ॥ पहु जइत. नगो तेड्यो प्रधान, मोकल्यो भेट दे बहुत मान । ढीली विजावा म करि ढील, मालदराउ मेटिसइ मील ॥ भेटा दे मिलीयो नगो मल्ल, महपतीतणो जोए महल्ल । मुहुत्त दे घणो दीवाणमांहि, पहिरायो मुहतो पातिसाहि ॥ सर सोनइर वाडी सहित्त, रीझायो साह दीन्हो रहत्त । असी सहस अस अस्सवार, पहु मालसेनको नही पार ॥ सो हुओ खेत मातो संग्राम, निहसीस जइ राखितं नाम । मन आणी जइतइ मेरमत्त, पिड निहसइ रहीयो खोड पत्त ॥ रावा सुमुहतो भीमराज, कुलदीपक रहीयो सामिकाज । सांभलीयो नगे मारीयो सामि, मालिम साह कीयो सीस नाम ॥ पतसाह छोडि पूरष पठाणि, खेडइ खंधार लग खुरासाण। मेल्हाण दीया दसि मारवाड, उखणे माल नाखू उपाड ॥
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