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________________ वा च क गुण वि न य रचित आण लेइ श्रीराजनी, निज परिजन सवि लेइ रे । स्वामि धरमि श्रीमंत्रिजी, मेडतइ वास करेइ रे ॥धर्मः॥ १९४ निर्मल जल गंगातणउ, राजहंसि जिणि पिद्ध रे। ते उछइ जलि किम पीयइ, मल सेवाल असुद्ध रे॥धर्म०॥ १९५ तिम जिणि नृप ए सेवीयउ, ते किम करइ परसेव रे। कुंडजलइ किम रइ करइ, जिणि गजगाही रेव रे॥धर्म०॥ १९६ । श्रीफलवधि-प्रभुपासनी, सेवा करिवा जाइ रे । जासु प्रसादइ जागती, जगमइ महिमा थाइ रे ॥धर्म०॥ १९७ श्रीजिनदत्तसूरिंदनी, सेवा करइ विसेसइ रे । श्रीजिनकुशलप्रसादथी, चिंता नही लवलेसइ रे ॥ धर्म०॥ .. १९८ मंत्रीसर मति आगलउ, सांभलि श्रीसुरताण रे । श्रीरायसिंह मुखा दियउ, बोलावण फुरमाण रे ॥धर्म०॥ १९९ पामी नृपजन करथकी, श्रीसाहिनउ फुरमाण रे । लेइ सुभट घटा घणी, गज सजि वर केकाण रे॥धर्म०॥ २०० शुभ शकुने ऊमाहीयउ, आयउ श्रीअजमेरू रे । जात्रा करी गुरूनी गिणइ, धन दिन मुझ अज मेरूं रे॥धर्म०॥ २०१ श्रीलाहोरइ आवीयउ, देखी साहि सनूर रे । भेटि देइ संतोषीयउ, मिलिउ साहि हजूर रे ॥धर्म०॥ २०२ साहि दिलासा इम दीयइ, तो सम कुन मतिमंत रे। वखतदार तुं आवीयउ, रहि दरबारि निचिंत रे॥धर्म०॥ २०३ म करि चिंत काइ इहां, बडा करूं मइ तोहि रे। बपु वपु भाग्यतणी दसा, जहां जाअइ तहां सोहे रे॥धर्म०॥ २०४ साहिइ गजपति मंत्रिनइ, बकस्यउ श्रीदरवारि रे। अरू सिकारि हय सउंपीयउ, सोवन साखत सार रे॥धर्म०॥२०५ गरथगंज धइ राखिवा, दानतदार विमासि रे । धइउ जे हतो सामिनि, राखइ श्रीनिजपासि रे॥धर्म०॥ २०६ मूलनक्षत्रि जाइ मुता, श्रीशेखूनइ जाणि रे। साहि हुकमि शांतिक कीयउ, हेम रजत कुंभ आणि रे॥धर्म०॥२०७ तिहां मंगलेवइ आवीयउ, श्रीसलेम सुरतान रे । भेटि सहस दस रूप्यनी, देखि भयउ हयरान रे॥ धर्म०॥ २०८ शांतिक जल लेइ करइ, अंतेउरनइ संगि रे । श्रीजी नयनि लगावीयउ, मंत्री रहइ रली रंगि रे ॥ धर्मः ॥ २०९ ॥ ढाल ९, राग-आसाउरी ॥ आमल कलपा थान-ए देशी । आचार्य श्रीजिनचंद्रने अकबरनु आमंत्रण । अन्य दिवसि रसमांहि, साहिजी एम कहइ री । कुन जिनदर्शनमांहि, सदगुरुरेष वहइ री-आंकणी॥ २१० तब बोलइ गुण जान, पंडित जन उलसी री । श्रीजिनचंद्र महंत, जहां गुणरासि वसी री ॥ अन्य०॥ २११ तिनकउ कुन इहां सिष्य, श्रीक्रमचंद्र अछइ री । बोलावइ तमु पासि, दे फरमाण पछइ री ॥ अन्य० ॥ २१२ खिजमतीया फरमान, सेती भेजइ तहां री। गूजरमंडलि तांम, त्रंबावती जहां री ॥ अन्य० ॥ २१३ साहिहुकमि गुरु देखिं, जियमइ आणि रली री । आए अहमदावादि, विकसी सुमति कली री ॥ अन्य० ॥ २१४ शुभ शकुने उच्छाह, बिउणउ चित्ति धरी री। आए सीरोहीमहि, भूपतिसेव करी री ॥ अन्य० ॥ २१५ तिहां नृप श्रीसुरताण, उच्छव करि सगरइ री । जीवदयानउ लाभ, आपइ चित्त खरइ री ॥ अन्य० ॥ २१६ सोवनगिरि चउमास, राखे साहि खुसी री । देइ निज फुरमान, भागकी लील इसी री ॥ अन्य०॥ २१७ मगसिरि करिय विहार, मेडतइ नागपुरइ री । विचि वंदावी संघ, आए सुजस वरइरी ॥ अन्य० ॥ २१८ तहां विक्रमपुर संघ, वंदइ हरष घणइ री । खरचइ द्रव्य अपार, जय जय लोक भणइ री ॥ अन्य० ॥ २१९ मरुमंडल अवगाहि, आए रिणीपुरइ री । करइ महोच्छव संघ, पुण्यभंडार भरइ री ।। अन्य०॥ २२० सांकर सुत वीरदास, अवसर लहि सुपरइ री । साथि थइ लाहोर, मारगि भगति करइ री ॥ अन्य० ॥ २२१ सरसामांहि पधारि, फागुण पख उजलइरी। बारिसि दिनि लाहोरि, श्रीसाहिजीनइ मिलइरी ॥ अन्य०॥ २२२ गउखथकी पतसाहि, सनमुख आवि अखइ री । बहुत महत धइ स्वामि, अब तुम आए मुखइ री॥ अन्य० ॥ २२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003400
Book TitleMantri Karmchandra Vanshavali Prabandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1980
Total Pages122
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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