SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ठक्कुर फेरू विरचित ज्योतिष सार Mammam ॥ ॐ स्वस्ति ॥ ॥ आदित्यादिग्रहा नमः॥ सयलसुरासुर नमिउं जोइससारं भणामि किं पि अहं संखेवि परप्पहियं निरिक्खिउं पुव्वसत्थाई ॥१ हरिभद-नारचंदे पउमप्पहसूरि-जउण-वाराहे । लल्ल-परासर-गग्गे कयगंथाओ इमं गहियं ॥ २ दिणसुद्धि बयालीसं विवहारे सहि गणिय अडतीसं । गाह दुहियसउ लग्गे दुसय बयालीस जुय सव्वौ ॥३॥ दारं॥ [प्रथमं दिनशुद्धिद्वारम् ] दिणशुद्धि जहारवि' ससि कुजै बुहँ गुरे सिर्य सणिवारा राह केये सहिय गहा। ससि बुह गुर सिय सोमा कूर त्ति बुहो य जेण जुओ ॥ ४ नंदा भद्दा य जया रित्ता पुन्ना य पडिवयाइ तिही । नक्खत्त जोय रासी. चकं अवकहड सुपसिद्ध ॥५ तं जहा-अश्विनी १, भरणि २, कृत्तिका ३, रोहिणी ४, मृगशिरः ५, आद्रा ६, पुनर्वसु७,पुष्य ८, अश्लेषा ९, मघा १०, पूर्वफाल्गुनी ११, उत्तरफाल्गुनी १२, हस्त १३, चित्रा १४, खाति १५, विशाखा १६, अनुराधा १७, ज्येष्ठा १८, मूल १९, पूर्वाषाढा २०, उत्तराषाढा २१, अभीचि २२, श्रवण २३, धनिष्ठा २४, शतभिषा २५, पूर्वभाद्रपद २६, उत्तरभाद्रपद २७, रेवति २८ ॥ इति नक्षत्रनामानि ॥ ४२ दिणसुद्धि, ६० व्यवहार, ३८ गणित, १०२ लग्न,२४२ गाहा । -टिप्पपी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003399
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakkur Feru, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy