SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला - रत्नपरीक्षादि सप्त ग्रन्थ संग्रह मोजिनाय । मयलसुराखरविंद देसक्नापुगाइ नमि। पयरतिकुमारीज अन मलेनिनणिमाद।। श्वोदयनर दियस त्रिपरिस्रमादती माझे पासामपिश्रियमाहीती गुल मी स्वाविशरिज ! प्रशनागतात व महिराणी दीपादिरुम बरनीरेचन सबै गनुमा एआड सडडिओ गुलकमाहमसिमउत्तमाजाणविल सहियापीहाण करिणा पनि पमाणे सुदया विदरीय असुदयानि रशिया) राममिकरविवचिङहयायाम विश्वसंक । पढमंत कायम वाजतयद्विदय है।। ६दिखादना नीतिडीए। वहं तिल ग्रहको कक्कड एलाऊ दिसि तिरियदल वजनसे ॥] वनरंसिक्किक्वि दिसावारसला गाठथ सामझ तियएवं सुश्रहं सं । इति रूमि सात्र नानाला ॥ चसवदि कलर लुमिसु भरणी वादिकरा। रारू सर का तंतु मल्ल भाग मि. सतरंयलामगि झणदिसहतिय सिमोदुश्रिदम्भिया फुट तिदिण हा सात बुबुदारव ऊदृचमिमडुयरी | मसला तिखियंवमेव संदसतियांविमोगा कमिांतर के डिगबल दाद मिमिम्सम अगर मलयगिरिपश्यमी मिरिवेद गंध सिरि वेदपुल दचंट पुनील वई एकडिया नाइतियां तदयम वचदण इथल श्री-माएका १४००६०० १७ १० २५ 3 मारता सक सनावनासयरा करुणपी परिभाविददाणेदा सिकरु देनिलयोग (कउदीका विकला नवेदणार शायपरममियवास GOSAN कानाथ वस्तुसार ग्रन्थ का आदि पृष्ठ धातूत्पत्ति ग्रन्थ का अन्तिम पृष्ठ
SR No.003399
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakkur Feru, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy