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________________ ठकुर फेरू रचिता खरतरगच्छयुगप्रधानचतुः पदिका । नमो जिनाय । सयल सुरासुर वंदिय पाय, वीरनाह पणमवि जगताय । सुमरेविणु सिरि सरसइ देवि, जुगवरचरिउ भणिसु संखेवि ॥ १ सुहमसामि गणहर पमुह, सिरि जुगपवर नाम वर मंत, सुमरहु अणुदिणु भत्तिजय । लीलइ तरिवि भवोवहि जेम, कमि कमि पावहु सिद्धिसुह ॥ धूवकं वद्धमाणजिणपट्टि पसिद्धु, केवलनाणीगुणिहि समिद्धु | पंचमु गणहरु जुगवरु पढमु, नमहु सुहंमसामि गुरु अममु ॥ २ भज्जा अट्ठ पंच सय तेण, इक्कि रयणि पडिवोहिय जेण । सुगुरपासि लिउ संजमभारु, सरहु सरहु सो जंबुकुमारु ॥ ३ पभवसूरि सिजंभउ सुगुरु, जसोभद्दु सूरीसरु पवरु । सिरि संभूयविजउ मुणितिलउ, पणमहु भद्दवाहु गुणनिलउ ॥ ४ भद्दवाह सूरीसरपासि, चउदस पुव्व पढिय गुणरासि । भंजिउ जेण मयणभडवाउ, जयउ सु थूलिभद्दु मुणिराउ ॥ ५ दूसमकालि तुलिउ जिणकप्पु, अज्ज महागिरि गुरु माहप्पु । अज्ज सुहत्थि थुणहु धरि भाउ, जिणि पडिबोहिउ संपइ राउ ॥ ६ संतिसूर कय संघह संति, चउदिसि पसरिय जसु वरकित्ति । तासु पट्टि हरिभदु मुणिंदु, मोहतिमिरभर हरण दिणिंदु ॥ ७ संडिलसूरि तह अज्ज समुदु, अज्ज मंगु जणकइरवचंदु | 'अज्ज धम्मु घर पयडिय धम्मु, भद्दगुत्तु दंसिय सिवसम्मु ॥ ८ वयसामि भाविय तित्थु, अज्ज रक्खिउ वोहिय जणसत्थु । अज्ज नंदि गुरु वंदहु नरहु, अज्ज नागहत्थीसरु सरहु ॥ ९ रेवयसामि सूरि खंडिल, जिणि उम्मूलिय भवदुहसल्ल । हेमवंतु झायहुवहु भत्ति, तरहु जेम भवसायरु ज्झत्ति ॥ १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003399
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakkur Feru, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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