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वास्तुसार-प्रथमप्रकरण मूलगिहे पच्छिमदिसि जो कारइ तिन्नि वार ओवरए। सो तं गिहं न भुंजइ अह भुंजइ दुक्खिओ हवइ ॥ ९१ कमलेगि जं दुवारो अहवा कमलेहिं वजिओ होई।। हिट्ठाउ उवरि पिहलो न ठाइ थिरु लच्छि तम्मि गिहे ॥ ९२ वलयाकारं कूणेहिं संकुलं अहव एग दु ति क्रूणं । दाहिण-वामय दीहं न वासियव्वेरिसं गेहं ॥ ९३ सयमेव जे किवाडा पिहियंति य उग्घडंति ते असुहा । चित्त-कलसाइ-सोहा-सविसेसा मूलवारि सुहा ॥ ९४ छतितरि भित्तिरि मग्गंतरि दोस जे न ते दोसा । साल-ओवरय-कुखी-पिटि-दुवारेहिं बहु दोसा ॥ ९५ . जोइणि नट्टारंभं भारह-रामायणं च निवजुई । रिसिचरिय-देवचरियं इअ चित्तं गेहि नहु जुत्तं ॥ ९६ फलिहतरु कुसुमवल्ली सरस्सई नवनिहाणजुअलच्छी। कलसं वद्धावणयं सुमिणावलियाइ सुहचित्तं ॥ ९७ पुरिसु व्व गिहस्संगं हीणं अहियं न पावए सोहं । तम्हा सुद्धं कीरइ जेण गिहं हवइ रिद्धिकरं ॥ ९८ वजिजइ जिर्णपुट्ठी रवि ईसर दिहि विन्हु वामो य । सव्वत्थ असुह चंडी वम्ही पुण सव्वहा चयह ॥ ९९ अरिहंतदिहि दाहिण हर पुट्ठी वामए सुकल्लाणं । विवरीए बहु दुक्खं परं न मग्गंतरे दोसं ॥ १०० पढमंत जाम वज्जिय धयाइ दु-तिपहरसंभवा छाया । दुहदायों नायव्वा तओ य जैत्तेण वजिज्जा ॥ १०१
१ मुहि। २बारद दुन्नि बारा ओवरए। ३ हवह । ४ ढाइ । ५ वामह । ६ दारि। ७ गेहु । ८ पिट्ठी। ९ विण्ड वामभुआ। १० बंभाणं चडदिसि घयह । ११ दोसो। १२ हेऊ। १३ पयत्तेण ।
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