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________________ बास्तुलार-प्रथमप्रकरण ७७ स पन्हि उत्तरेण ये दय वरसल्लं कैंडीइ रोरकरं । पप्पण्हे गोसल्लं सडकरीसाणि धणनासं ॥ १५ य प्पन्हि मज्झकुठे केसं छारं कवाल अइसल्ला । वच्छत्थलप्पमाणा मिञ्चुकरा होंति नायव्वा ॥ १६ इय एवमाइ अन्निवि जे पुव्वगयाइं होंति सल्लाई । ते सव्वे वि य सोहिवि बच्छबले कीरए गेहं ॥ १७ तं जहा। वच्छचक्रं कन्नाइं तिन्नि पुवे धणाइ तिय दाहिणे भवे वच्छो । पच्छिम मीणाइ तियं उत्तर मिहुणाई तिय णेयं ॥ १८ गिहभूमि सत्तभायं पण ५ दह १० तिहि १५ तीस ३० तिहि १५ दस १० द्ध ५ कमे। इय दिणसंखे चउद्दिसि सिरि पुंछ समंकि वच्छठिई ॥ १९ अग्गिमओ आयुहरो धणक्खयं कुणइ पच्छिमो वच्छो । वामो य दाहिणो वि य सुहावहो होई नायवो ॥ २० धण मीण मिहुण कन्ने रवि ठिय गेहं न कीरए कहवि । तुल विच्छिय मेस विसे पुव्वावर सेस सेस दिसे ॥ २१ ॥ इति वत्सं ॥ सोय १ धण २ मिच्चु ३ हाणी ४ अत्थं ५ सुन्नं च ६ कलह ७ उव्वसियं ८। पूया ९ संपई १० अग्गी ११ सुह च १२ चित्ताइ मासफलं ॥ २२ ॥ इति गृहारंभे मासफलाफलम् ॥ १ उत्तरदिसि सप्पण्हे। २ दिय। ३ कडिम्मि। ४ करे धणविणासमीसाणे । ५ जप्पण्हे मज्झगिहे अइच्छार कवाल केस बहुसल्ला। वच्छचउलप्पमाणा पाएण य हुंति मिझुकरा ॥ १७ ॥ ६ कन्नाइतिगे पुव्वे वच्छो तहा दाहिणे धणाइ तिगे। पच्छिमदिसि मीण तिगे मिहुण तिगे उत्तरे हवइ ॥ १९ ॥ ७ भाए। ८ दहक्खकमा। ९ संखा चउदिसि । १० आउहरो। ११ हवइ । १२ धण मीण मिहुण कण्णा संकंतीए न कीरए गेहं। १३ संपई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003399
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakkur Feru, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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