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________________ प्रास्ताविक कथन जिसमें मुद्राओं के मूल उपादान, धातुओं की चासनी, धातुशोधन प्रणालिका, भिन्न भिन्न मुद्राओं ( सैकडों रकम की) के नाम, टंकसालस्थान, आकार प्रकार, तौल, माप, धातु के मिश्रण, राजाओं के नाम - ठाम आदि सभी विषयों पर १४९ गाथाओं में, प्राचीन काल से ले कर तत्कालीन समय तक की प्राप्त सभी मुद्राओं पर विशिष्ट विवेचन किया गया है। प्रस्तुत प्रति जिसके कुल ६० पत्र हैं, संवत् १४०३-१४०४ में लिखी हुई सुन्दर सुवाच्य और अच्छी स्थिति में है। किसी सा० भावदेव के पुत्र पुरिसड़ ने अपने लिए लिखीं है । प्रति के हांसिये पर "पत्तनीय प्र.” लिखा हुआ है जिससे मालुम होता है कि यह प्रति मूलमें पाटण के ज्ञानभंडार की रही होगी । फेरू ग्रंथावली की प्रस्तुत प्रति से प्रेसकापी" भंवरलालने स्वयं अपने हाथ से करके पुरातत्याचार्य मुनि जिनविजयजी को भेजी, जिसे देख कर इन्होंने उस समय सिंघी जैन ग्रन्थमाला द्वारा इसे तुरन्त प्रकाशित करने की इच्छा व्यक्त की। साथ में आपने मूल प्रति को भी देखना चाहा। पर कलकत्ते की तत्कालीन सांप्रदायिक विषम परिस्थिति वश, वह तब उन्हें नहीं भेजी जा सकी । बादमें जब मुनि जी कलकत्ता पधारे तब प्रस्तुत प्रति को बंबई ले गये। श्रद्धेय मुनिजी जैसे विद्वान के तत्वाधान में यह ग्रंथ शीघ्र प्रकाशित हो ऐसी हमारी उत्कट इच्छा रही, पर सिंघी जैन ग्रन्थमाला के अनेकानेक ग्रन्थों के संपादन कार्य में मुनिजी अत्यन्त व्यस्त रहने के कारण इसके प्रकाशन कार्य में विलंब होता रहा। पर अब यह ग्रन्थ, इस रूप में राजस्थान पुरातन ग्रन्थ माला द्वारा प्रकाशित हो रहा है, जो इस विषय के जिज्ञासुओं को परम आनन्द दायक होगा। प्रस्तुत संग्रह में ठक्कुर फेरू के रत्नपरीक्षा' ग्रन्थ के परिचय रूप में, सुप्रसिद्ध विद्वान डॉ. मोती चन्दजी ने, हमारी प्रार्थना पर, एक विस्तृत निबन्ध लिख दिया है, जो इसमें मुद्रित हो रहा है। हम इसके लिये डॉ. साहब के प्रति अपना हार्दिक कृतज्ञ भाव प्रकर करना चाहते हैं । __ अन्त में हम आचार्य श्री जिनविजयजी के प्रति अपना विनम्र और सादर आभारभाव प्रदर्शित करना चाहते हैं कि इन्हों ने, बहुत परिश्रम के साथ, इस ग्रन्थ का यह सुन्दर प्रकाशन, राजस्थान पुरातन ग्रन्थ माला के एक सुन्दर रत्न के रूप में प्रकट कर, हमारे चिराभिलषित मनोरथ को सफल बनाया। अगरचन्द तथा भंवरलाल नाहटा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003399
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakkur Feru, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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